Thursday, 29 October 2015

करवा चौथ और पत्नी की क़िस्मत

पिता हर हाल में अपने बेटिया को खुश देखना चाहते हैं।इसी आश मे एक समय के बाद उसके लिए एक राजकुमार को खरीदते हैं जिसे हम दहैज़ कहते हैं।
पिता का संवाद बेटी से :-
पिता राजकुमारी जैसी बेटिया से कहतें हैं। देखो बेटिया तुम्हारे लिए राजकुमार खरीद कर लायें हैं जो तुम्हें बहुत प्यार देगा, मान-सम्मान देगा, तुम्हारी हर पल ख़्याल रखेगा, तुम्हारी हर बात मानेगा, हम से ज्यादा तुम्हारी  हर बात सुनेगा इस लिये सबसे मँहगा राजकुमार बाज़ार से ख़रीद कर लाया हूँ।।
बेटी का पिता से संवाद:-
सच में अगर वे मुझसे प्यार करेगा तो वह बाज़ार में नही बिकता और आप उसे ख़रीद कर नही लाते। अगर शादी के बाद भी वह मुझसे सच्चा प्यार करेगा तो वह मेरे पिता के बिका हुआ ज़मीन और माँ का बिका गहना वापस  करवा दिया होता......
लड़की बाज़ार में बिक जाये तो पूरा समाज उस पर और उसके परिवार पर थूकता है।
वँहीं
लड़का बाज़ार में जितनी ऊँची क़ीमत(दहैज़) में बिक जाये तो पूरा समाज उसे सम्मान और आदर से देखता है.....
कोई हमे भी बताये यह क्या हो रहा है ?
अरे, समाज के ठेकेदारों कब तक यह खेल खेलते रहोगो....
"कभी बेटा को बेचते हो..!
कभी बेटी के लिये ख़रीदते हो..!"
इसे ही आधुनिक समाज का मीणा बाज़ार कहते हैं !
जितनी ऊँची ख़रीद-बिक्री हो उतना बड़ा परिवार, उतना बड़े इज़्ज़त वाला ।
आप सभी का इस क्रेता और विक्रेता व्यपार  मेला में स्वागत है ।।
करवा चौथ आने वाला है दहैज़ लोभी का दम भर आरती उतारा जाए और बोला जाये की तुम ही 7 जन्मों तक मिलो और शादी के पहले इसी तरह हर जन्म में दहैज़ लेते रहो। इस लिये हम आपकी लम्बी आयु की कामना करती हूँ। और पति कहता है मैं तुम से सातो जन्म इसी तरह प्यार करता रहूँगा। जिस जन्म में दहैज़ नही या कम मिलेगा 7 जन्म का कॉन्टेक्ट उसी वक्त ख़त्म......
हमारे समाज के आधे से अधिक महिला इस लिये करवा चौथ करती है क्योंकि उसकी पड़ोसी भी करती है। अगर यह व्रत न करे न जाने कितने और किस प्रकार के आरोप उस पर लगेगा, शायद इस लिये भी करती है।असली बात यही है हमारे समाज में औरत की ज़िंदगी का नक्शा उसके पति से तय होता रहा है इस लिये यह व्रत करती है......
यह बात मुझे समझ में नही आती है कोई दिन भर भूखे प्यासे रहे और उम्र सामने वाले का बढ़ जाए।फिर भी उम्र सिर्फ़ पति की ही क्यों बढ़ाई जाए, पत्नी की क्यों नहीं ? अगर पति की उम्र बढ़ती जाए और पत्नी की न बढ़े तो क्या यह अंततः पति के विधुर हो जाने की गारंटी नहीं है ? 
कितना अच्छा होता कि इस व्रत का रूप कुछ और बदले। या तो पत्नियों के साथ पति भी व्रत रखें या दोनों ही इन प्रतीकों से मुक्त रहने का निर्णय करके इस दिन साथ-साथ घूमने-फिरने जाएँ, या फिर पति बोले मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि मेरे लिये भूखे प्यासे रहने की कोई ज़रूरत नही है, मेरी लम्बी उम्र से भी ज़रूरी तुम्हारा स्वास्थ्य है मेरे लिए, रही बात सात जन्म साथ साथ जीने की तो मैं इसी जन्म में सात जन्म ऐसा जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ.....
पत्नी द्वारा पति के पैर छूने की भद्दी, सामंती तथा अलोकतांत्रिक परंपरा खत्म हो। पति की पूजा करने वाली पुजारिन की जगह उसे पति का दोस्त बनने का मौका मिले, बराबरी की ज़िंदगी मिले।
अंत में बस इतना कहूँगा ...

प्यार तो सब करता है पर अधिकार की बात कोई नही करता है..!!
शादी तो सब करता है पर बराबर का अधिकार कोई नही देता है..!!

Thursday, 22 October 2015

"किसी को स्तन से तकलीफ़, किसी को टाँग से" :-एनी ज़ैदी

महाराष्ट्र में डांस बार के फिर से खुलने की संभावना हैं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि बार (यानी शराबघर) में डांस पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है.
कोर्ट ने माना है कि डांसरों को बार में काम करने का हक़ है, लेकिन साथ में ये चेतावनी भी दी है कि डांस में किसी प्रकार की अश्लीलता ना हो.
लेकिन ‘अश्लीलता’ क्या है? इसकी क़ानून में कोई परिभाषा तय नहीं है. जैसे ‘लाज’ या ‘इज़्ज़त’ या ‘सुशीलता’ की कोई क़ानूनी परिभाषा नहीं. किसी को मटकना अश्लील लगता है तो किसी को आँख का इशारा.
किसी को स्तन से तकलीफ़ है तो किसी को टाँग से. किसी को लड़कियों का जींस पहनना अश्लील लगता है और किसी को लड़कों का चूमना.
संस्कृति और अश्लीलता की लाठी का सहारा लेकर न जाने कितनी बार औरतों पर हमला हुआ है.

कुछ लोग, जिन्हें ना जनता ने वोट दिया है और ना ही किसी ने हिन्दुस्तानी संस्कृति का ठेका उनके हवाले किया है, पिछले कुछ सालों से मंगलुरु जैसे शहरों में क्लब और बार में लड़कियों को ढूँढ़-ढूँढ़कर मारते हैं.
कुछ पुलिस वाले सारे क़ानूनों को तोड़ते हुए मीडिया समेत मेरठ के पार्क में पहुँच जाते हैं और युवक-युवतियों को 'अश्लीलता' फैलाने के नाम पर मारा-पीटा जाता है.
अब महाराष्‍ट्र सरकार ये कहती है कि औरतों का बार में नाचना संस्कृति के ख़िलाफ़ है. जबकि सब जानते हैं कि हमारी संस्कृति में औरतों का नाचना तो शामिल है ही साथ ही साथ शराब, भांग और चरस भी शामिल है.
हिन्दुस्तान में हज़ारों तरह की संस्कृतियाँ एक साथ जीवित हैं.
यहाँ मंदिरों में संभोग के दृश्‍य तराशे गए. इसी देश में लड़कियाँ सार्वजनिक नाच में भाग लेती हैं, ख़ुद भी शराब पीती हैं और अपने पसंद का साथी चुनती हैं.
भारत के अंडमान द्वीप पर कुछ लोग निर्वस्त्र भी रहते हैं और ख़ुद को अश्लील नहीं समझते.

एक समय था जब देश के कई हिस्सों में औरतें ब्लाउज़ नहीं पहनती थीं. बल्कि पिछली सदी में कुछ औरतों ने अपनी स्मृति रचनाओं में लिखा भी है कि नानी के ज़माने में कोई युवती ब्लाउज़ पहन ले तो उसको अश्लील कह के डाँटा जाता था! छुप-छुप के ब्लाउज़ पहनती थी, रात को, सिर्फ़ पति को दिखाने के लिए!
सदियों से नाच-गाने का प्रदर्शन हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है. कभी मंदिर में हुआ करता था फिर महल-हवेली में हुआ. उसके बाद कोठे में इसे मर्यादा-बद्ध किया गया. फिर ये सभागृह में और सिनेमा के पर्दे पर आया.
क्या महाराष्‍ट्र के मुख्यमंत्री साहब ये सब नहीं जानते? क्या संगीत बरी और लावनी संस्कृति का हिस्सा नहीं है?
जब दरबार या बैठक में नाच होता था, तो क्या दर्शक शराब नहीं पीते थे? आज भी गाँव के मेले में हज़ारों मर्दों के सामने औरतें नाचती-गाती हैं. घर-घर में टीवी पर डांस देखा जाता है.
उसी तरह का डांस बार में हो, तो नेता संस्कृति और अश्लीलता की दुहाई देने लगते हैं.

शायद सुप्रीम कोर्ट को फ़िक्र इस बात की है कि बार में डांस के बहाने औरत का शोषण ना हो. ये फ़िक्र इंसानी तौर पर ठीक है, लेकिन इसका क्या फ़ायदा जब तक ‘शोषण’ और ‘अश्लीलता’ की कोई क़ानूनी परिभाषा ना बनाई जाए?
मसला डांस का नहीं है. मसला ये है कि डांस ख़त्म होने के बाद, बार बंद हो जाने के बाद क्या होता है.
बार में डांसर को छूना मना है, ये तो पहले भी नियम था. अगर उस पर दबाव डाला जाता है कि किसी ग्राहक के साथ, या स्वयं बार के मालिक के साथ, संबंध बनाए या अपने जिस्म का सौदा करे, तो उस डांसर को यक़ीन होना चाहिए कि वो पुलिस के पास जा सकती है.
साथ ही बार में डांस करने वालों का संगठन मज़बूत होना चाहिए, ताकि अगर कोई बार मालिक क़ानून तोड़ रहा है तो उसके ख़िलाफ़ बुलंद आवाज़ उठा सकें.

उसे दुत्कारा-फटकारा नहीं जाएगा, इस भरोसे के साथ कोई बार डांसर पुलिस के पास जाए तो क्या उसके साथ ऐसा बर्ताव होगा कि जैसे किसी पुलिस वाले की बेटी थाने में आई हो यह शिकायत दर्ज कराने के लिए कि उसके दफ़्तर में उस पर जिस्म का सौदा करने का दबाव डाला जा रहा है? क्या ये हो पाएगा?
इसका जवाब मेरे पास नहीं है. जवाब सिर्फ़ पुलिस दे सकती है और सरकार चलाने वाले नेता.
लेकिन जब तक वे अपना दिल टटोल कर जवाब ढूँढते हैं, हमारे वकीलों और न्यायधीशों को भी अपना दिल टटोलना होगा और इस शब्द की परिभाषा सोचनी होगी.
‘अश्लीलता’ क्या है, इसकी परिभाषा क़ानूनी रूप से स्पष्ट हो और इस शब्द की आड़ में देश की जनता पर हमला करने वालों को कड़ी सज़ा दी जाए.

Thursday, 8 October 2015

चोर से मेरी मुलाक़ात

कुछ दिन पहले की बात है एक लड़का मुझ से मिला और मेरे साथ दुकान पर गया । उसे कुछ सामान लेना था, दुकानदार उसको सामान देनें लगा और उसी बीच यह लड़का कुछ सामान चोरी कर लेता है इस बात की भनक मुझे भी नही लगी। दुकान से बाहर निकलने के कुछ दूर बाद मैनें देखा जो सामान खरीदा भी नही है वह भी उसके पास था ..मामला पूरी तरह समझनें में देर नही लगी।
इस से पहले कि मैं कुछ पूछता वह बोल परा ...

यह सब होते रहता है.....
इसी को कहते हैं अनुभव ....
अगर तुम तेज़ होते तो सामान उठा कर दिखाते...
हम होशियार थे तब ना उसके सामने रहते यह सब कम किये ना की पीठ-पीछे...
हिम्मत इसको कहते हैं दिखाना..
कमज़ोर आदमी की बस की बात नही है...
इस तरह का काम करना मेरा शौक है....
उसका सामान लिए हैं तुम्हारा क्या है...
जिसका लिए हैं वह बहुत बड़ा बेईमान है...
समझा की नही समझा...

यह सब सुन कर मेरा मन अशांत हो गया है उसके एक भी सवाल का जवाब नही दे पाया....

क्या इसी को कहते हैं तेज होना ?
क्या यही होशियार की पहचान है ?
क्या हिम्मत दिखाने का सही अर्थ यही होता है ?

"चोरी की ईंट से बनाया गया मकान
कभी भी ईमानदारी का छाँव नही देता"

इस बात को उसको कैसे बतायें ?

ईमानदरी ही सर्वोपरि गुण होता है। यह बाज़ार में नही मिलती है जो जरूरत पड़ने पर कोई ख़रीद ले।
..
अब यक्ष प्रश्न यह है कि इस हालत में मैं क्या करूँ ?

Wednesday, 7 October 2015

पगली

ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है
कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है
एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का
न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का
साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी
अभी अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी
वो कालेज में पढने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी
कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी
प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई
लूट लिया सब कुछ प्रेमी ने आखिर में कंगाल हो गई
पहले प्रेमी ने ठुकराया फिर घर वाले भी रूठ गए
वो लड़की पागल-सी हो गई सारे रिश्ते टूट गए

अभी-अभी वो पागल लड़की नए शहर में आई है
उसका साथी कोई नहीं है बस केवल परछाई है
उलझ- उलझे बाल हैं उसके सूरत अजब निराली-सी
पर दिखने में लगती है बिलकुल भोली-भाली-सी
झाडू लिए हाथ में अपने सड़कें रोज बुहारा करती
हर आने जाने वाले को हँसते हुए निहारा करती
कभी ज़ोर से रोने लगती कभी गीत वो गाती है
कभी ज़ोर से हँसने लगती और कभी चिल्लाती है
कपड़े फटे हुए हैं उसके जिनसे यौवन झाँक रहा है
केवल एक साड़ी का टुकड़ा खुले बदन को ढाँक रहा है

भूख की मारी वो बेचारी एक होटल पर खड़ी हुई है
आखिर कोई तो कुछ देगा इसी बात पे अड़ी हुई है
गली-मोहल्ले में वो भटकी चौखट-चौखट पर चिल्लाई
लेकिन उसके मन की पीड़ा कहीं किसी को रास न आई
उसको रोटी नहीं मिली है कूड़ेदान में खोज रही है
कैसे उसकी भूख मिटेगी मेरी कलम भी सोच रही है
दिल कहता है कल पूछूंगा किस माँ-बाप की बेटी है
जाने कब से सोई नहीं है जाने कब से भूखी है
ज़ुर्म बताओ पहले उसका जिसकी सज़ा वो झेल रही है
गर्मी-सर्दी और बारिश में तूफानों से खेल रही है

शहर के बाहर पेड़ के नीचे उसका रैन बसेरा है
वहीँ रात कटती है उसकी होता वहीँ सवेरा है
रात गए उसकी चीखों ने सन्नाटे को तोडा है
जाने कब तक कुछ गुंडों ने उसका जिस्म निचोड़ा है
पुलिस तलाश रही है उनको जिनने ये कुकर्म किया है
आज चिकित्सालय में उसने एक बच्चे को जन्म दिया है
कहते हैं तू कण-कण में है तुझको तो सब कुछ दिखता है
हे ईश्वर क्या तू नारी की ऐसी भी क़िस्मत लिखता है
उस पगली की क़िस्मत तूने ये कैसी लिख डाली है
गोद भर गई है उसकी पर मांग अभी तक खाली है --

हमने उनको भी छुप छुप कर आते देखा है उन गलियों में !

वेश्या ,रंडी, धंधेवाली  

हमारे सभ्य संस्कारी समाज पर काला धब्बा … यही कहते है ना हम सब हमेशा . 

कभी सोचा है इनको ये सब करने पर मजबूर किसने किया, ऐसी क्या मजबूरियां हुई कि एक नारी को अपने जिस्म का सौदा करना पड़ता है. ना चाहकर भी चंद रुपयों के लिए 10-15 भेड़ियों से रोज़ अपने जिस्म को नुचवाना पड़ता है.

नरक से भी बदतर जिन्दगी, ना सुबह का पता चलता है ना शाम का. कहने को तो इन्हें रात की रानी कहा जाता है पर ना जीते जी कोई इनकी खबर लेता है ना मरने के बाद इनका कुछ पता चलता है. इनके बच्चे अगर किस्मत वाले हुए तो किसी समाजसेवी संस्था के जरिये इस दलदल से बाहर निकल कर सामान्य जिंदगी बिताते है और अगर बदकिस्मती से उसी अँधेरे में रह गए तो लड़के अधिकतर अपराधी या दलाल बन जाते है और लड़कियां किसी कोठे की रौनक.

रेड लाइट एरिया जिन्हें हम शहर की गंदगी कहते है,  क्या कभी सोचा है कि हर छोटे बड़े शहर में कहीं खुले आम तो कहीं चोरी छुपे ऐसे रेड लाइट एरिया क्यों होते है.

इसका जवाब अमरप्रेम फिल्म के एक गाने में बखूबी दिया है जिसके बोल है

“हमको जो ताने देते है हम खोये है इन रंगरलियों में, हमने उनको भी छुप छुप कर आते देखा है उन गलियों में”

सामने से इन्हें भला बुरा कहने वाले भी कहीं ना कहीं इन वेश्याओं से आकर्षित हो ही जाते है.

क्या आप जानते है कि एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया कहीं और नहीं हमारे देश भारत में ही है.

कोलकाता का सोनागाछी इलाका.

इस क्षेत्र के बारे तरह तरह की कहानियां प्रचलित है कुछ सच्ची कुछ झूठी.

चिड़ियाघर में पिंजरे में कैद जानवरों की हालत से भी बदतर हालत होती है सोनागाछी में इन छोटे छोटे दडबे जैसे पिंजरों में कैद लड़कियों की. जिनकी नुमाइश होती है सडक पर जिससे आते जाते ग्राहक उनकी अदाओं के जाल में फंस जाए.

कुछ ऐसा नज़ारा होता है दिन में सोनागाछी के कोठों का. दिन में इन वेश्याओं को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि ये हमसे अलग है.

लगेगा भी कैसे किसी के चेहरे पर थोड़ी लिखा होता है कि वो वेश्या है.

सोनागाछी की वेश्या भी होती तो आखिर इंसान ही है. इन्हें भी प्यार दुलार रिश्ते नाते दोस्ती करने का मैन करता है. जहाँ थोडा स स्नेह मिलता है वहीँ ये अपना सारा दुःख दर्द भूल जाती है, भले ही दो पल के लिए सही.

कहने को तो ये वेश्याएं है पर इनके भी परिवार होते है. दिन रात अपने जिस्म का सौदा करके भी इन्हें कोई सुख सुविधा नहीं मिलती.

कहने को तो वेश्यावृत्ति का व्यापार बहुत बड़ा है पर अधिकतर पैसा वेश्याओं को नहीं उनके मालिकों, दलालों की जेबों में जाता है. वेश्याओं को तो बस मिलता है कुछ पैसा और ढेर सारा अपमान और परेशानियाँ.

यौन रोग वेश्याओं में सबसे बड़ी समस्या होती है.  सोनागाछी में ना साफ़ सफाई है ना ही कोई व्यवस्था. यहाँ आने वाले अधिकतर ग्राहक भी गरीब और शराबी होते है . उनके साथ सेक्स करते समय सबसे बड़ा डर एड्स या किसी अन्य प्रकार की बीमारी का होता है. ऐसे में समय समय पर कुछ समाज सेवी संस्थाएं इन वेश्याओं को कंडोम वितरित करती रहती है और यौन संक्रमण से बचने के तरीके भी बताती है.

सोनागाछी की बहुत सी वेश्याएं पडौसी देश बांग्लादेश से आती है. अत्यधिक गरीबी की वजह से परिवार पालने के लिए वो भारत इस उम्मीद से आती है कि उन्हें यहाँ कोइ रोजगार  मिल जायेगा. लेकिन दलालों और जिस्मफरोशी के ठेकेदारों के चंगुल में फंसकर वो जीते जी नरक में धकेल दी जाती है .

सडक पर बिकने वाले मुर्गे और बकरों की तरह सोनागाछी में इंसानों का बाज़ार लगता है. अपने अपने कोठे या कमरे के बाहर खडी होकर ये बदनसीब औरतें और लड़कियां अपने जिस्म नोचने वालों को रिझाती नज़र आती है.

देखा आपने जिन्हें हम गालियाँ देते रहते है वो बेचारी वेश्याएं किस नरक में रहती है.

वो भी आपकी हमारी तरह इंसान है उन्हें भी जीने का हक है. लेकिन इस धंधे में वो बस एक जिंदा लाश बनकर रह जाती है. जहाँ दिन रात अंधेरी कोठरियों में उनका जिस्म कुचला जाता है.

आत्मा तो उनकी पहले ही मर चुकी होती है और उस आत्मा की हत्या करने वाले होते है हम और हमारा समाज…

Monday, 5 October 2015

भिखारी

कुछ बच्चें जो कि एक विद्यालय के विद्यार्थी थे।
गाँव के खेतों के रास्तों से होते हुए अपने विद्यालय जा रहे थे। 
तभी उनकी नजर एक भिखारी पर पड़ी वह भूखा प्यासा लोगो से पैसे माँग रहा था उसे देख सभी विद्यार्थी के मन में ढेरो सवाल उठने लगे। विद्यार्थी विद्यालय पहुँचते ही.......
उनके विद्यालय के अध्यापक जो सभी विद्यार्थीयों के चहेतें थे तथा सभी विद्यार्थी उनकी दयालुता के कारण उनका बहुत आदर करते थे।
उनके पास पहुँचें और बोल पड़े- सर भिखारी कौन होते है ?
लोग भिख क्यों माँगते है?
जैसे ढेरो सवाल अध्यापक के सामने थे।
अध्यापक ने मुस्कुराकर कहा-मैं तुम सभी के सवालो का जवाब दुँगा। तुम सब अपने कक्ष में चलों।
सभी विद्यार्थी कक्ष में अध्यापक का बेसबरी से इंतजार कर रहे थे।
अध्यापक ने आते ही ब्लैक बोर्ड पर लिखा 

‘‘सच्ची मदद‘‘ 
और कहा-
‘‘ मैं आज आप सभी को एक कहानी सुनाना चाँहता हूँ।

एक पिता अपने बेटे के साथ घर के बाहर खेल रहा था।
कि तभी उनके पास एक भिखारी आया जो कि 15-16 साल का एक बालक था उसने कहा- ‘‘ मालिक 3दिन से भूखा हूँ कुछ पैसे दे दो.....रहम करो....भगवान अपका भला करेगा...आपका बेटा खूब नाम कमायेगा‘‘ ।
पास खड़े बेटे को जिसकी उम्र 10 वर्ष थी उसे भिखारी की ज्यादा बातें तो समझ नहीं आयीं पर वो इतना तो समझ गया कि भिखारी को भूख लगी है और उसे पैसे चाहिये...
बेटे ने अपने पिता से कहा - ‘‘पापा इसे पैसे दे दो न‘‘।
पिता ने मुस्कुराकर कहा-तुम पहले जाओं अपनी माँ से कुछ खाने का लाओं और इसें खाना खिलाओं।
बेटे ने भिखारी को खाना लाकर दे दिया।
भिखारी ने पेट भर खाना खाया और कहा- ‘‘ साहब आप तो अमीर है, खुदा की मूरत है, दयालू है, थोड़े पैसे और दे दो सहाब।
पिता ने भिखारी को देखा फिर चारो ओर देखा और कहा-
‘‘ सामने मेरी कार खड़ी है तुम उसे साफ कर दो मैं तुम्हे 50 रूपये दूँगा।
भिखारी ने सोचा और कहा - ‘‘ पानी और कपड़ा कहा से लू सहाब।
उसने गाड़ी साफ की और 50 रू लेकर चला गया।
इस तरह अब वो रोज आता और सभी के घर जाकर कहता साहब मैं अपकी गाड़ी साफ कर दुँ।
बस इस तरह पैसे कमा कर वो अपना पेट भरने लगा और अब लोग उसे भिखारी नहीं कहते थे।
अध्यापक ने अचानक विद्यार्थीयों की और देखा तो पाया कि सभी विद्यार्थीयों के चहरे पर मुस्कान हैं।
अध्यापक ने कहा - सुनो बच्चों
अगर पिता उस दिन भिखारी को पैसे दे देता तो....
भिखारी को लगता कि रोने से गिड़गिडाने से पैसे मिल जाते है और वो दूसरे दिन किसी ओर के पास जाकर भिख माँगता और जिन्दगी भर भिखारी ही कहलाता।
भिखारी वो इंसान होता है जो बिना मेहनत किये अपना पेट भरना चाँहता है।
अगर किसी इंसान कि मदद करना हो तो ऐसी करो जिससे वह सही रास्ते पर चल सके।
इसे ही कहते है - ‘‘सच्ची मदद‘‘

संदेश- इस समाज को भिखारी हम लोग देते है... हमारे कारण ही एक इंसान भिखारी बनता हैं....‘‘सच्ची मदद‘‘करना सिखिए।

Sunday, 4 October 2015

आग में फंसी मां और गर्लफ्रेंड में से किसे बचाना चाहेंगे आप? 

~~आग में फंसी मां और गर्लफ्रेंड में से किसे बचाना चाहेंगे आप? ~~

एक ने आपको जन्म दिया और पाल-पोस कर बड़ा किया, तो दूसरे ने आपको प्यार किया और जिंदगी को और खूबसूरत बनाया. सोचिए अगर कभी इन दोनों में से किसी एक की जिंदगी बचाने का सवाल उठे? तो जाहिर सी बात है कि आप गंभीर धर्मसंकट में फंस जाएंगे।

मां और गर्लफ्रेंड में से किसे चुनेंगे आप? 
इस सवाल का जवाब आसान तो नहीं है भले ही मां को बचाना बाध्याकारी न भी हो तब भी क्या आप मां की जगह अपनी गर्लफ्रेंड को बचाने का फैसला कर पाएंगे क्योंकि आप उससे बहुत प्यार करते हैं? भगवान करे कोई कभी ऐसी स्थिति में न फंसे लेकिन जरा सोचकर देखिए और सच्चे दिल से बताइए कि जिसके साथ आप जीने-मरने और पूरी जिंदगी भर का साथ निभाने का वादा करते हैं उसे बचाने के लिए अपनी मां को मौत के मुंह में अकेला छोड़ पाएंगे?

आखिर आपकी जन्मदाता और तकलीफों और मुसीबतों का सामना कर आपको बड़ा करने वाली मां ही होती है, ऐसे में जाहिर सी बात है कि आपको उसे ही बचाना चाहिए, तो फिर दो बार क्यों सोचना, मां को बचाना तो आपका कर्तव्य है!

लेकिन अगर आपको लगता है कि इस सवाल का सबसे सटीक जवाब यही है, तो जरा रुकिए जनाब!

सोचिए कैसे आप उस इंसान जिसे आप दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं और जिसके साथ पूरी उम्र चलना चाहते हैं, मरने के लिए अकेला छोड़ आएंगे? मां की ममता की कीमत इस दुनिया में कोई नहीं चुका सकता लेकिन उस इंसान का क्या जिसने पूरी दुनिया को छोड़कर आपसे बेपनाह मोहब्बत की है? तब तो आप अपनी मोहब्बत को खो देने के डर से हर हाल में अपनी गर्लफ्रेंड को ही बचाएंगे! है ना? लेकिन फिर मां की ममता का क्या होगा?

ओह, अब शायद आप इतने परेशान हो गए हैं कि इस बहस से तौबा करना चाहते हैं, खैर इस बहस में शामिल होकर मेरा भी हाल कुछ ऐसी ही है। इसलिए आप सोचिए और अगर समझ में आ जाए कोई जवाब तो जरूरत बताइएगा!