पिता हर हाल में अपने बेटिया को खुश देखना चाहते हैं।इसी आश मे एक समय के बाद उसके लिए एक राजकुमार को खरीदते हैं जिसे हम दहैज़ कहते हैं।
पिता का संवाद बेटी से :-
पिता राजकुमारी जैसी बेटिया से कहतें हैं। देखो बेटिया तुम्हारे लिए राजकुमार खरीद कर लायें हैं जो तुम्हें बहुत प्यार देगा, मान-सम्मान देगा, तुम्हारी हर पल ख़्याल रखेगा, तुम्हारी हर बात मानेगा, हम से ज्यादा तुम्हारी हर बात सुनेगा इस लिये सबसे मँहगा राजकुमार बाज़ार से ख़रीद कर लाया हूँ।।
बेटी का पिता से संवाद:-
सच में अगर वे मुझसे प्यार करेगा तो वह बाज़ार में नही बिकता और आप उसे ख़रीद कर नही लाते। अगर शादी के बाद भी वह मुझसे सच्चा प्यार करेगा तो वह मेरे पिता के बिका हुआ ज़मीन और माँ का बिका गहना वापस करवा दिया होता......
लड़की बाज़ार में बिक जाये तो पूरा समाज उस पर और उसके परिवार पर थूकता है।
वँहीं
लड़का बाज़ार में जितनी ऊँची क़ीमत(दहैज़) में बिक जाये तो पूरा समाज उसे सम्मान और आदर से देखता है.....
कोई हमे भी बताये यह क्या हो रहा है ?
अरे, समाज के ठेकेदारों कब तक यह खेल खेलते रहोगो....
"कभी बेटा को बेचते हो..!
कभी बेटी के लिये ख़रीदते हो..!"
इसे ही आधुनिक समाज का मीणा बाज़ार कहते हैं !
जितनी ऊँची ख़रीद-बिक्री हो उतना बड़ा परिवार, उतना बड़े इज़्ज़त वाला ।
आप सभी का इस क्रेता और विक्रेता व्यपार मेला में स्वागत है ।।
करवा चौथ आने वाला है दहैज़ लोभी का दम भर आरती उतारा जाए और बोला जाये की तुम ही 7 जन्मों तक मिलो और शादी के पहले इसी तरह हर जन्म में दहैज़ लेते रहो। इस लिये हम आपकी लम्बी आयु की कामना करती हूँ। और पति कहता है मैं तुम से सातो जन्म इसी तरह प्यार करता रहूँगा। जिस जन्म में दहैज़ नही या कम मिलेगा 7 जन्म का कॉन्टेक्ट उसी वक्त ख़त्म......
हमारे समाज के आधे से अधिक महिला इस लिये करवा चौथ करती है क्योंकि उसकी पड़ोसी भी करती है। अगर यह व्रत न करे न जाने कितने और किस प्रकार के आरोप उस पर लगेगा, शायद इस लिये भी करती है।असली बात यही है हमारे समाज में औरत की ज़िंदगी का नक्शा उसके पति से तय होता रहा है इस लिये यह व्रत करती है......
यह बात मुझे समझ में नही आती है कोई दिन भर भूखे प्यासे रहे और उम्र सामने वाले का बढ़ जाए।फिर भी उम्र सिर्फ़ पति की ही क्यों बढ़ाई जाए, पत्नी की क्यों नहीं ? अगर पति की उम्र बढ़ती जाए और पत्नी की न बढ़े तो क्या यह अंततः पति के विधुर हो जाने की गारंटी नहीं है ?
कितना अच्छा होता कि इस व्रत का रूप कुछ और बदले। या तो पत्नियों के साथ पति भी व्रत रखें या दोनों ही इन प्रतीकों से मुक्त रहने का निर्णय करके इस दिन साथ-साथ घूमने-फिरने जाएँ, या फिर पति बोले मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि मेरे लिये भूखे प्यासे रहने की कोई ज़रूरत नही है, मेरी लम्बी उम्र से भी ज़रूरी तुम्हारा स्वास्थ्य है मेरे लिए, रही बात सात जन्म साथ साथ जीने की तो मैं इसी जन्म में सात जन्म ऐसा जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ.....
पत्नी द्वारा पति के पैर छूने की भद्दी, सामंती तथा अलोकतांत्रिक परंपरा खत्म हो। पति की पूजा करने वाली पुजारिन की जगह उसे पति का दोस्त बनने का मौका मिले, बराबरी की ज़िंदगी मिले।
अंत में बस इतना कहूँगा ...
प्यार तो सब करता है पर अधिकार की बात कोई नही करता है..!!
शादी तो सब करता है पर बराबर का अधिकार कोई नही देता है..!!