वो दीपावली की अगली सुबह की तरह है
फिर से रोज की तरह घर,आँगन सँवारेगी
वो दीपावली की अगली दोपहर की तरह है
फिर से सारा पिछला हिसाब कर बात सुनाएगी
वो दीपावली की अगली शाम की तरह है
फिर से तिनका तिनका जमा कर घर सजायेगी
वो दीपावली की अगली रात की तरह है
फिर से सारी रात ख़ामोशी से गुजारेगी
और अंत में
वो मेरी ज़िन्दगी के अमावस्या की पूर्ण चाँद की चाँदनी है
उसके बिना क्या पर्व त्योहार सब फीका है