Thursday, 12 May 2016

मातृ दिवस पर "मन की बात"

जिस समाज में स्त्री के अस्तित्व और उसके मान सम्मान पर हर रोज प्रश्न चिन्ह लगतें हों वहाँ पर एक दिन का मातृ दिवस का ढ़ोल, मैं नही पिट सकता हूँ।
मातृत्व सुख और उसकी पीड़ा क्या होती है ? यह तो हर माँ ही बता सकती है। क्योंकि इस मामले में मैं अयोग्य हूँ, इस लिए लिख नही पा रहा रहा हूँ।परंतु ऐ तो सच है यह दुनियां की सबसे सुखद अनुभूति होती है।
मातृत्व सुख चाहे मनुष्य, पशु, पक्षी के मादा का हो हमेशा सुखद,पीड़ादायक,उत्साहवर्द्धक,स्नेहपूर्ण, ममता से भरा हुआ होता है।लेकिन मातृ दिवस पर हम सब सिर्फ अपनी माँ को ही याद कर के छोड़ देतें हैं बाँकी सब प्राणी ऐसे हैं जिसनें पीड़ा सहन ही नही की हो....
किसी अभागन की मांग सुनी है फिर भी गोद भर जाए मतलब एक अविवाहिता का मातृत्व सुख बेहद भेद-भाव पूर्ण एवं कष्टपूर्ण होता है हम सब तो मिलकर उसके और बच्चे की साँसे तक छीन लेते हैं क्योंकि माँ बन कर दुनियां का सबसे बड़ा पाप जो उसने कर दिया है...
पतित महिला के बारे में हम सब तो भूल ही जाते हैं की उसका न तो महिला दिवस होता है और न ही मातृ दिवस, आज के दिन भी वे कहीं पर दम तौड़ रही होती है... उसकी तो अलग ही दुनियां है, आज के समय में भला उसे कौन मातृ दिवस का शुभकामनाएं दे रहा होगा...ज्यादा से ज्यादा हमदर्दी दिखानें पर बदन पर से आज कम कपड़े नुचेगें...आत्मा कम कल्पेगा...
तलाक़ और विधवा माँ को हम सब किस नज़र से देखतें है किसी से छुपा नही हुआ है.... आज भी वे अपनी मान समान के लिए हमारे समाज के सामने घुटनें टेके रहती है....उसके बच्चे से हमेशा एक ही प्रश्न पूछते हैं, बाप का नाम बताओ..??
दारूबाज जब अपनी ही पत्नी से कहता है यह किसका बच्चा है? उसके बाद उस महिला से पूछिए मातृत्व सुख और मातृ दिवस क्या होता है ??...
इन सब से थोड़ा संतोषप्रद विवाहिता माँ कि स्थिति होती है। कब गर्भवती होना है कब नही, लड़का को जन्म देना है या लड़की को इस बार मौका देना है या गर्भपात कराना है... सारे फैसले दूसरे के होते हैं। लगता है यह माँ नही कोई मशीन है जो किसी सामान का उत्पाद करेगी दूसरी की माँग, जरूरत, इच्छा के हिसाब से....
बच्चों की परवरिश में भी बच्चे सम्भल जाये तो श्रेय बाप को मिलता है और अगर बिगड़ गये तो कलंक का कालिख़ माँ को लगता है।
हम सब भी बड़े होकर भूल जाते हैं कि माँ ने कितने कष्ट सहकर पाला है और हमारी आनेवाली पीढ़ी को बस यही लगता है की कब बुढ़िया मरे तो इसकी सेवा करनें से जान छूटे...
माँ के लिए हर कोई ज्यादा से ज्यादा घर में AC, चार चक्की गाड़ी, नौकर की व्यवस्था और बीमार होनें पर डॉक्टर एवं हॉस्पिटल की सुविधा, कभी घूमने के लिए बाहर ले जाना... इस से ज्यादा कोई नही करता है।
माँ का ऋण ही इतना ज्यादा है की इसे चुकता या लौटाने के लिए सोचता भी नही हूँ..इस कर्ज़ में डूबे रहनें का अपना अलग ही मज़ा है...
ऊपर तमाम बातों के बावजूद #मातृ_दिवस मनाना बेहद ज़रूरी है..
और अंत में
प्राणी जगत् के समस्त माताओं को #मातृ_दिवस पर चरण स्पर्श..!