नीले आकाश के नीचे भूरे ज़मीन पर दिल्ली के JNU प्रांगण में अक्सर अकेले में उदास गिरगिट से बात करते थे विद्रोही जी !
हर कोई JNU में विद्रोही बनना चाहता है । शायद विद्रोही जी अपना पूरा जीवन काल दूसरों की हक की लड़ाई में, उसकी उचित माँग, देश में हर घटना पर अपनी निष्पक्ष दृष्टिकोण, और उनकी कविता जो हमेशा ओज रस से भरा , कटाक्षपूर्ण रहता था।
विद्रोही जी अब इस दुनियां में नही रहें फिर भी उनकी आवाज़ मेरी कानों में गूँजती है ....
उनका सोचनें का स्तर, किसी भी विषय वस्तु की संवेदनशीलता, उनका भावनात्मक लगाव अंजानेपन से भी ....और भी बातें हैं...
1.किसी भी व्यक्ति के मन में क्या चल रहा यह कोई नही बता सकता है...
2.कोई क्या सोच कर बोल रहा है सामनें वाला कभी भी नही बता सकता है...
विद्रोही जी अपनी हर बात में इन्हीं दोनों बातों को कहा है....
वे अपनी लय और ताल में कहते थे ।
★मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले!
आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता हैतो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों
में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा.
:―विद्रोही जी
★‘’इतिहास में वो पहली औरत कौन थी- जिसे सबसे पहले जलाया गया ?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी रही हो- मेरी मां रही होगी
मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा ?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी होगी- मेरी बेटी होगी
और मैं यह होने नहीं दूंगा .‘’
______ विद्रोही जी _______
लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
Friday, 11 December 2015
विद्रोही जी पर "मन की बात"
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A6

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