Monday, 3 October 2022

कर्तव्य और जिम्मेदारी के बीच सब्र और इंतज़ार

परदेश में भी तुझे याद करता हूँ
हर चहरे में तुझे ढूंढने का कोशिश करता हूँ..

व्यस्तता तो बहुत बढ़ गई है नये शहर में
फिर भी हर पल में तुझे याद करता हूँ

वादा तो था इस दशहरा अपनी दुर्गा के साथ देखूंगा
परंतु बहरूपिया महिषासुर को रोकने की जिम्मेदारी आ मिली है

जितना दूर रहता हूँ उतनी मोहब्बत होती है तुझसे
जितनी मोहब्बत होती है तुझसे उतनी जिम्मेदारी समझ आती है मुझमें

और अंत में

तेरे बिना ये शहर सुनसान लगता है
पूरा भरा शहर कब्रिस्तान  लगता है