Sunday, 1 September 2019

गाना / Title: जिहाल-ए-मस्ती, मकुन-ब-रन्जिश - jihaal-e-mastii, makun-b-ranjish

चित्रपट / Film: Gulaami 1985
गीतकार / Lyricist: गुलजार-(Gulzar)
गायक / Singer(s): लता मंगेशकर-Lata Mangeshkar - Shabbir Kumar

जिहाल-ए-मस्ती मकुन-ब-रन्जिश,
बहाल-ए-हिज्र बेचारा दिल है

सुनाई देती है जिसकी धड़कन
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है

वो आके पहलू में ऐसे बैठे
के शाम रंगीन हो गई है (३)
ज़रा ज़रा सी खिली तबीयत
ज़रा सी ग़मगीन हो गई है

(कभी कभी शाम ऐसे ढलती है
के जैसे घूँघट उतर रहा है ) - २
तुम्हारे सीने से उठ था धुआँ
हमारे दिल से गुज़ार रहा है

ये शर्म है या हया है क्या है
नजर उठाते ही झुक गयी है
तुम्हारी पलकों से गिरके शबनम
हमारी आँखों में रुक गयी है

खुसरो का वह गीत जिससे गुलज़ार को प्रेरणा मिली थी।

अमीर खुसरो ने एक गीत (तकनीकी तौर पर इसे क्या कहेंगे मैं नहीं बता सकता) लिखा जिसकी खासियत यह थी कि इसकी पहली पंक्ति फ़ारसी में थी जबकि दूसरी पंक्ति ब्रज भाषा में। फ़िल्म के गीत की तर्ज पर ही खुसरो के इस गीत को भी पढ़ें। गजब के शब्द.. कमाल की शब्दों की जादूगरी।

ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, (फ़ारसी)
दुराये नैना बनाये बतियां | (ब्रज)
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान, (फ़ारसी)
न लेहो काहे लगाये छतियां || (ब्रज)

शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़
वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह, (फ़ारसी)
सखि पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां || (ब्रज)

यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू
ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं, (फ़ारसी)
किसे पडी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियां || (ब्रज)

चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान
हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह | (फ़ारसी)
न नींद नैना, ना अंग चैना
ना आप आवें, न भेजें पतियां || (ब्रज)

बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर
कि दाद मारा, गरीब खुसरौ | (फ़ारसी)
सपेट मन के, वराये राखूं
जो जाये पांव, पिया के खटियां || (ब्रज)

चाहें अमीर खुसरो हों जिनके सूफ़ी गीत आज भी उनके चाहने वालों की पहली पसंद हैं और चाहें गुलज़ार जो पिछले पाँच से छह दशकों से एक के बाद एक नायाब गीत हमें दे रहे हैं.. दोनों का ही अपने क्षेत्र में कोई मुकाबला नहीं।