सुकून का एक पल पानें के लिए घर से निकले..
बदले में शाम तक तन्हाई का पूरा शहर ही मिल गया।
जीना है एक दिन इसके लिए जी रहे थे।
क्या पता था मुझे यह एक दिन मौत तक पहुँचा देगी।।
कमबख्त जिंदगी भी शतरंज जैसी हो गई है
नही खेले तो द्रौपदी की तरह बिना खेले हारनें का डर।
अगर शतरंज की चाल चलो तो अपनों का खोनें का डर।।