चल मुशाफिर चल ........
यादों के इस शहर से दूर
गम के शरहद के उस पर
तेरी मंज़िल ...चल मुशाफिर चल ...
लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
Friday, 24 July 2015

जिस्म की तलब जँहा ख़त्म होती है.......उस से थोड़ी दूर आगे ....मुहब्बत शुरू होती है.....

कह देना हक़ीकत लाजमी है....
सच बोलने वाला मुज़रिम है ....!
चुप रहना ही सच मे बेहतर है..
मन की कुछ लोग खफ़ा हो जायेंगे...!!

हे साँप, मैं तुम से एक प्रश्न पूछता हूँ उत्तर दोगे क्या ?
तुम अपने अन्दर इतना विष कहाँ से पाया ..?
हे साँप तुम इतने जहरीलें कैसे हो ..?
तुम तो मनुष्य के बीच भी नही रहते..

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