Tuesday, 9 August 2016

धर्मप्रेमिका !

मोहब्बत रोग होती है ,कहा भी था,,
रुला कर खुद भी रोती है,कहा भी था,,
किनारे के करीब ले जा कर,,
ये कश्ती को डूबोती है,कहा भी था,
तुम इसको दिल की धरती का पता मत दो,,
ये इसमें दर्द बोती है,कहा भी था,,
मोहब्बत में ख़ुशी के बाद गम की घडी,,
बहुत नजदीक होती है,कहा भी था,,
लुटा कर दिल को रोने से, भी क्या हासिल,,
बहुत नायाब मोती है,कहा भी था,,
शुरू से इसकी आदत है ज़माने में,,
जगा कर खुद ये सोती है,कहा भी था,,
ये सर से पाँव तक राख़ कर देगी,,
बहुत बेदर्द होती है,कहा भी था।।।