क़रीब रहना और क़रीब होना दोनों ही अलग अलग बात होता है।
जिनकें मुलाक़ातों में मक़सद छुपे हों, उनसें फ़ासला रखना ही बेहतर होता है।जहाँ तक प्यार का सवाल है वह एक-दो दिन में नही होता है। पहले पसंद फिर आकर्षण, उसके प्रति ईमानदार होना, नैतिक तौर पर जिम्मेदार होना, जबावदेहिता, समर्पण की भावना, सत्यनिष्ठा के साथ विश्वास भी...यह सब होते होते चार से पाँच साल लग जाते हैं उसके बाद जो एहसास उतपन्न होता है वही प्यार होता है।
आजकल सेकण्ड हैण्ड जवानी के दौर में युवा वर्ग इतने तेज़ी से आगे बढ़ रहें हैं की थोड़ा और तेज दौरे तो ओलंपिक में एक-दो मैडल मिल जाये। दो प्राणी में से एक, अपनी मानसिक या शारीरिक सुख प्राप्त के लिये दूसरे की भावनाओं के साथ फुटबॉल खेलता है।और वह इस बात कि प्रवाह भी नही करता की हर इंसान की अपनी सोचनें, समझनें, सहने की सीमा होती है... और उसके भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
अंत में बस इतना कहूँगा ....
"प्यार अगर सच्चा हो तो #विरह भी प्यारी लगती है..!
नही, तो बगल में साथ चलते हुए भी #शरीर_नज़र आती है..!!"
लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
Thursday, 11 February 2016
फरवरी का महीना और सेकण्ड हैण्ड जवानी पर "मन की बात"
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A6

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