Thursday, 8 October 2015

चोर से मेरी मुलाक़ात

कुछ दिन पहले की बात है एक लड़का मुझ से मिला और मेरे साथ दुकान पर गया । उसे कुछ सामान लेना था, दुकानदार उसको सामान देनें लगा और उसी बीच यह लड़का कुछ सामान चोरी कर लेता है इस बात की भनक मुझे भी नही लगी। दुकान से बाहर निकलने के कुछ दूर बाद मैनें देखा जो सामान खरीदा भी नही है वह भी उसके पास था ..मामला पूरी तरह समझनें में देर नही लगी।
इस से पहले कि मैं कुछ पूछता वह बोल परा ...

यह सब होते रहता है.....
इसी को कहते हैं अनुभव ....
अगर तुम तेज़ होते तो सामान उठा कर दिखाते...
हम होशियार थे तब ना उसके सामने रहते यह सब कम किये ना की पीठ-पीछे...
हिम्मत इसको कहते हैं दिखाना..
कमज़ोर आदमी की बस की बात नही है...
इस तरह का काम करना मेरा शौक है....
उसका सामान लिए हैं तुम्हारा क्या है...
जिसका लिए हैं वह बहुत बड़ा बेईमान है...
समझा की नही समझा...

यह सब सुन कर मेरा मन अशांत हो गया है उसके एक भी सवाल का जवाब नही दे पाया....

क्या इसी को कहते हैं तेज होना ?
क्या यही होशियार की पहचान है ?
क्या हिम्मत दिखाने का सही अर्थ यही होता है ?

"चोरी की ईंट से बनाया गया मकान
कभी भी ईमानदारी का छाँव नही देता"

इस बात को उसको कैसे बतायें ?

ईमानदरी ही सर्वोपरि गुण होता है। यह बाज़ार में नही मिलती है जो जरूरत पड़ने पर कोई ख़रीद ले।
..
अब यक्ष प्रश्न यह है कि इस हालत में मैं क्या करूँ ?