Saturday, 5 December 2015

असहिष्णुता पर मन की बात

असहिष्णुता बोलनें में मुझे दिक्क़त होती है मतलब उच्चारण में त्रुटि हो जाती है...
जिस व्यक्ति को बोलने आता है वह बोल बोल कर असहिष्णुता शब्द फैला रहा है.... और अंत में कहता है देश में असहिष्णुता ज़्यादा बढ़ गई है।
ग़रीब चाहे वह जिस धर्म का हो उसे असहिष्णुता , विषहिष्णुता , सहिष्णुता जैसे शब्द का तो अर्थ भी नही जानता....उसे तो बस दो वक़्त की रोटी, सर पर एक छत और बदन पर एक कपड़ा चाहिए ।
बाँकी सब धर्म, जाति, रंग, ऊँच-नीच , अमीरी......सब उसके लिए शोषण के माध्यम है... और कुछ भी नही!!
कैमरा के सामने भाषण देना आसान होता है चाहे वह आमिर ख़ान हो या अनुपम खेर.... जब भी ग़लत होगा मरता ग़रीब का बेटा ही और इज्ज़त ग़रीब की बेटी की लुटती है ,भाषण देनें वालों का नही....।

अंत में बस इतना कहूँगा....

वो राम का प्रसाद भी खाता है...
वो रहीम की खीर भी पीता है...
जो भूखा है...
उसे मजहब कहाँ समझ आता है..