जिंदगी के रास्तों में लात खाते-खाते ,गालियाँ सुनते-सुनते, दूसरों का ताना-बाना झेलते-झेलते अपने अंदर एक जबरदस्त मानसिक नवविचार का ठहराव पाता हूँ। अब हम खुद से कहते हैं कि अब किसी की इतिचुकी की भी परवाह नही, चाहे कोई कुछ सोचे या कुछ भी बोले जो रास्ता हमनें चुना है सबसे बेहतर है......
"अपनी जिंदगी अगर खुद की मर्जी से न जीयी तो सब बेकार है"
पिंजरे में बंद परिन्दे,आज़ाद पक्षी को घयाल होते देखकर बड़े प्रसन्न होते हैं,
क्योंकि उनकी घुटन से उत्पन्न हीनता की भावना को शान्ति मिलती है!