Monday, 8 April 2024

फुर्सत में यारों के साथ यादों की बस्ती में

यादें झांकती है टूटी हुई खिड़की से अक्सर
मैं चेहरा छुपाये घूमता हूँ तेरे उजड़े हुए शहर से

अक्सर न मिलनें की उम्मीद से आता हूँ तेरी गली में
प्रतीक्षा में  ख़ुद की छोड़ आता हूँ तेरी गली में खुद को

आते जाते राहगीर  पूछते हैं ख़ैरियत मुझसे
हर बार तेरा जैसा हाल कह देता हूँ उससे