Thursday, 18 August 2016

रियो ओलंपिक और रक्षाबन्धन !

प्रिय मित्रों

हरिस्मरण !

आज सुबह सुबह उठते ही जब जुकरबर्ग भाई के fb को हाथ लगाया उधर से ‪#‎साक्षी_मलिक‬ बहिन सभी भारतीय निठल्ले गबरू भाई को अपने कांस्य पदक से ही राखी बाँध रही थी उसमें भी पहलवानी वाला।हम भी गर्व से अपना छाती फुला कर हाथ आगे कर दिये की आज से मेरी रक्षा की जिम्मेदारी बहन तुम्हारी हुई।

मन ही मन याद कर रहा था की एक जमाना था जब घर में लुड्डो भी खेलनें देना दूर के बात छूनें भी नही देते थे। बहुत मुस्किल से जब खिलाड़ी घट जाता तब एक, दो चान्स मिलता था... छु-ती-ती-ती, चोर-सिपाही, क्रोस- ज़ीरो, कैरम बोर्ड... यदि सब वाला खेल में मौका मिलता था उसमें भी घर के अंदर ही।

गलती से भी किसी कुत्ते पर भी पत्थर उठा कर नही फेकी होगी।कभी भी गुस्से से गिलास भी उठा कर नही पटकी होगी। हाँ अगर गुस्सा ज्यादा आने पर देर तक खाना बनाने के साथ एक दो रोटी जरूर ज्यादा बना देती थी।

अपने परवरिस के विपरीत आज तूनें पुरे दुनियाँ के सामने जो पहलवानी की है, जिस तरह से उठक-पटक कर चीत कर सारे देशवासियों को ‪#‎रियो‬ ओलंपिक में पहला पदक के साथ हमारी चहरे पर जो मुस्कान दी है, उसमें भी ‪#‎रक्षाबन्धन‬ के दिन अपने आप पर गर्व कर रहा हूँ। साथ ही अपने किये पर पश्चयताप भी हो रहा है और लज्जा भी आ रही है।

आज हम सब संकल्प लेता हूँ की तुम्हारी स्वतंत्रता, आज़ादी, पसंद, नापसंद, तुम्हारी हर इच्छा को सर्वोपरि स्थान दूँगा। तुम्हारी विकसपथ पर कभी भी धर्म, समाज का रीति रिवाज, प्रथा का आँच नही आनें दूँगा।

जो गलतियाँ हो गई तो हो गई अब अपने बराबर तुझको भी अधिकार दूँगा ही नही बल्कि किसी तरह का अंतर या भेदभाव नही करूँगा।

और अंत 

हम सभी देशवासी ‪#‎दीपा_कर्मकार‬, ‪#‎सानिया‬, ‪#‎साइना‬, ‪#‎सिंधु‬, ....सभी पर हमेशा ही गर्व करता हूँ और करता ही रहूँगा। हार जीत खेल और जीवन का क्षणिक हिस्सा होता है। आप सभी पहले से ही इस देश की डायमंड, प्लेटिनीयम हैं...... स्वर्ण, रजत, कांस्य का पदक लेनें की हम सब की भी कोई तमन्ना नही है, बस हम सब के लिए आप देश का नेतृत्व करतें रहें यही हमारे लिए सोभाग्य की बात है।

..

आप सभी को साथ ही मित्रों को

‪#‎__रक्षाबन्धन_की_बधाई_और_शुभकामनाएं‬!



Thursday, 11 August 2016

सच्चे प्यार को तरसती और भटकती मीना को शायद यह भी नही पता था कि उनके प्यार की मंजिल कौन है :- ट्रेजडी क्वीन

अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंजिलें है कौन सी, ना  वो समझ सके न हम
फिल्म थी - #दिल_अपना_और_प्रीत_पराई। अगर आपको प्रेम कहानियों में दिलचस्पी है और आपने यह फिल्म नहीं देखी तो समझिए आप एक खास चीज देखने से महरूम रह गए हैं । वासना रहित प्रेम कितना सघन और प्रबल हो सकता है आपको इस फिल्म से पता चलता है।
कुछ दिन पहले देखी यह फिल्म का असर आज भी है। लगता है कि यह रूह में गहरे पैबस्त हो चुकी है । एक डॉक्टर से अटूट प्रेम करती नर्स की अनूठी कहानी पर फिल्म आधारित है। संयोग कह लें कि इसकी नायिका मीना कुमारी ही थीं । आप कल्पना नहीं कर सकते मीना की जगह कोई और इस गुम्फित चरित्र को निभा सकता था ।
अभिनय इतना जबरदस्त कि लगता था कि यह मीना कुमारी की ही अपनी जिंदगी हो। यही उनके अभिनय की खासियत थी। ऐसा लगता मानो फिल्मी किरदारों की रूह उनमें समा गई हो। यही क्यों, #साहब_बीवी_और_गुलाम में छोटी बहू के किरदार में मीना कुमारी अद्भुत लगी हैं।
कहते थे यह किरदार उनकी जिंदगी के बेहद करीब था । दूसरों पर प्यार का समंदर लुटाने के बाद भी सच्चे प्यार की एक बूंद के लिए तरसती मीना का दिल गमों, कराह और दर्द का ऐसा जखीरा बन चुका था जो कभी खाली न हो सका ।
यहूदी में एक विजातीय रराजकुमार को दिल दे बैठने वाली लड़की के किरदार में मीना का रोल भुलाए नहीं भूलता । मोहब्बत और फर्ज की जंग में अपनी आखें फोड़ लेने वाले ट्रेजडी किन्ग दिलीप साहब के मुकाबिल ट्रेजडी क्वीन ही टिक सकती थी।
#दिल_एक_मंदिर में उनके हीरो एक बार फिर जानी यानी राजकुमार थे। मीना कुमारी के साथ काम करते हुए उन्होंने भी अपने अभिनय का रेज गजब उठाया था । अस्पताल में कैसर से जूझ रहे पति की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए ब्याहता का सातों ‌सिंगार में सजकर आने का दृश्य अरसे तक कचोटता रहता है ।
ऐसी कितनी फिल्मों के नाम गिनाए शायद कई किताबें अधूरी पड़ जाएगी। कमाल अमरोही से बेपनाह मुहब्बत उन्हें मंजिल- ऐ- मकसूद तक नहीं पहुंचा पाई। प्यार की मृगतृष्णा उन्हें उम्र भर भटकाती रही। कभी किसी के दामन से लिपट कर रो लेना, कभी मयकशी के जरिए गम को भुलाने की नाकाम कोशिश ने निजी जिंदगी में भी उन्हें ट्रेजडी क्वीन बना दिया ।
मीना प्यार की चाहत में भटकती मीरा की तरह ही थीं । फर्क सिर्फ इतना है कि मीरा जानती थी कि उनका प्यार तो गिरधर गोपाल है जो आत्मिक तौर पर हर वक्त उनके साथ ही कहता है । सच्चे प्यार को तरसती और भटकती मीना को शायद यह भी नही पता था कि उनके प्यार की मंजिल कौन है । यही इस ट्रेजडी क्वीन की सबसे बड़ी ट्रेजडी थी।
तनहाई का इनफिनिटी तक के विस्तार का दूसरा नाम था मीना कुमारी। आप इससे इत्तेफाक रखें या न रखें । मीना कुमारी के साथ ही इश्क की मंजिल के लिए भटकती हर शख्सियत को खिराजे अकीदत पेश करते हुए।

Tuesday, 9 August 2016

धर्मप्रेमिका !

मोहब्बत रोग होती है ,कहा भी था,,
रुला कर खुद भी रोती है,कहा भी था,,
किनारे के करीब ले जा कर,,
ये कश्ती को डूबोती है,कहा भी था,
तुम इसको दिल की धरती का पता मत दो,,
ये इसमें दर्द बोती है,कहा भी था,,
मोहब्बत में ख़ुशी के बाद गम की घडी,,
बहुत नजदीक होती है,कहा भी था,,
लुटा कर दिल को रोने से, भी क्या हासिल,,
बहुत नायाब मोती है,कहा भी था,,
शुरू से इसकी आदत है ज़माने में,,
जगा कर खुद ये सोती है,कहा भी था,,
ये सर से पाँव तक राख़ कर देगी,,
बहुत बेदर्द होती है,कहा भी था।।।