Tuesday, 16 May 2017

अच्छे दिन का इंतज़ार और मेरी तन्हाई---: पटना

सुकून का एक पल पानें के लिए घर से निकले..
बदले में शाम तक तन्हाई का पूरा शहर ही मिल गया।

जीना है एक दिन इसके लिए जी रहे थे।
क्या पता था मुझे यह एक दिन मौत तक पहुँचा देगी।।

कमबख्त जिंदगी भी शतरंज जैसी हो गई है
नही खेले तो द्रौपदी की तरह बिना खेले हारनें का डर।
अगर शतरंज की चाल चलो तो अपनों का खोनें का डर।।

Thursday, 11 May 2017

पटना से खगड़िया :- राज्यरानी एक्सप्रेस

अभी राज्यरानी एक्सप्रेस में हूँ पटना से जिला खगड़िया जा रहा हूँ..
यह ट्रेन गंगा के किनारे से शुरू होती है और ताल क्षेत्र होते हुए कोसी के आँचल तक भ्रमण कराती है। दूसरी ओर यह ट्रेन एक विकासशील क्षेत्र से पिछड़े क्षेत्र को जोड़ने का काम करती है।
सीट नही मिला है मेरी इस हालत को देख कर एक सज्जन बोले पेपर बिछा कर नीचे बैठ जाओ नही तो यह भी नही मिलेगा।
मेरे बगल वाले ने बिहार के हालात पर राजनीति पर चर्चा शुरू करते हुए भ्रष्टाचार, शराबबंदी, लालू, बाढ़ पर अपना तीन-चार तीर छोर दिया है और इसके जबावी कार्यवाही में विपक्षी ने इसके तर्क को अपने चने के भुंजा के साथ चवा गया है..
एक युवक सीट की खोज में एक बूढ़े बाबा को अपना निशाना बनाया है, बाबा अपने झोले और दोनों पैर को सीट पर रख कर यात्रा का आनंद ले रहे थे अचानक अपनी इस सत्ता को खोते देख कर बाबा बीमार हो गयें हैं.... अब बीमारू बाबा और युवक में जंग छीर चूका है अब देखते है सीट युद्ध में कौन बाजी मरता है
और अंत में..
यह महारानी ट्रेन अपनी आदत के विपरीत चाल में चल रही है पता नही कब मुझे मेरी मंजिल पर पहुचायेगी...!