लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
Wednesday, 30 September 2015
तीज़ और पत्निओ के साथ मार-पीट

Saturday, 26 September 2015
धर्मप्रेमिका
तुम तीव्र गति से आती हो और शनैः से चली जाती हो....!!
मैं दिल से बात करता हूँ, तुम दिमाग से बात कर चली जाती हो....!!

Wednesday, 23 September 2015
दुर्गा पूजा की यह कैसी तैयारी ?
दुर्गा माँ की पूजा करने वाले देश में छोटी बच्ची, महिला यहाँ तक की पत्नियों से रेप क्यों ?
..
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कुछ ही दिन मे दुर्गा माँ की पूजा अर्थात् शक्ति की आराधना होगी।
हमारे घर और समाज की दुर्गा तो शक्तिहीन है...
तो फिर किस बात की यह पूजा, उपवास रखा जाता है।
महिला आख़िर अपनी ही प्रतिमा से क्या माँगती है ....
शायद पति की लंबी आयु ,भाई की कुशलता ,परिवार की ख़ुशी...
या फिर सब कुछ ठीक हो जायेगा , कभी न कभी सबको समझ आ जायेगा, यह बात अपने मान को समझाती होगी....
एक ख़ास बात और जरूर माँगती होगी की माँ आज अगर सच्चे मन से तेरी पूजा की है तो मुझे सही-सलामत और मेरी लाज़ बचा कर इस मेले की भीड़ से सुरक्षित घर पहुँचा देना....
अब देखना यह है की इस बार दुर्गा पूजा में हमारे समाज के ठेकेदार क्या करते है?
सभ्य समाज के इस सबसे घिनौने कृत्य से छुटकारा पाने के लिए हम सब एक हों..!
रेप पीड़ित महिलाओं की असहनीय पीड़ा, घुटन और उनके दर्द भरे अनुभवों को एक गाने नें समेटा है. 'Till It Happens To You' (जब तक ये आपके साथ न हो) @ ज़रूर आप सभी सुनें...
गाना सुनने के बाद एक प्रश्न जरूर पूछें....
क्या रेप होने के बाद ही इसका दर्द समझ में आता है ?

Monday, 21 September 2015
समझदारी और ईमानदारी हर जगह होनी चाहिए..! ख़ास जगह और लोगों तक ईमानदारी दिखाने वाले पर भरोसा ना करें..!!
अमित और उसकी फैमिली परेशान थी. दरअसल
अमित की बहन नेहा कॉलेज से अब तक घर नहीं
आयी थी. रोजाना 2 बजे वह घर पर आ जाती थी,
लेकिन आज उसे बहुत देर हो गयी थी. आखिरकार
शाम को जब वह घर आयी, तो उसने बताया कि
आज कॉलोनी के एक लड़के ने उसे छेड़ा.
वह कॉलेज से उसका पीछा कर रहा था, इसलिए वह
रास्ता बदल कर आ रही थी, लेकिन वह था कि
उसके पीछे-पीछे ही आता. बीच में कम भीड़ वाली
जगह देख कर उसने रास्ता रोक लिया और हाथ
पकड़ लिया. वह हाथ छुड़ाने की कोशिश करती रही,
लेकिन छुड़ा नहीं पायी.
उसके आसपास खड़े लोग भी यह सब देख रहे थे,
लेकिन कोई मदद को नहीं आया, क्योंकि उस
लड़के के साथ उसके गुंडे जैसे दिखनेवाले दोस्त भी
थे. उस लड़के ने जबरदस्ती उसके गले में फूलों का
हार डाला और हंसी उड़ाता हुआ चला गया. नेहा
यह बोलते हुए रो पड़ी.
सिसकते हुए बोली, वहां भीड़ में खड़ा एक लड़का
मेरी मदद को आगे बढ़ रहा था, तो उसके दोस्त ने
कहा, ‘जाने दे.. तेरी बहन लगती है क्या? क्यों
फालतू पंगा ले रहा है..’
उसके यह कहते ही अमित को बीती शाम का
किस्सा याद आया. तब भी एक लड़की को कुछ
लड़के परेशान कर रहे थे और वह उम्मीद की नजर
से अमित की तरफ देख रही थी कि वह मदद करने
आयेगा, लेकिन उसने यही सोच कर वहां से
निकलना सही समझा कि ‘अपनी बहन थोड़े ही है.
जिसकी होगी, वो जाने’. अब उसे अपनी गलती का
अहसास हो रहा था.
उसने तय किया कि अब रास्ते में किसी भी लड़की
के साथ छेड़छाड़ होती देखेगी, तो वह बर्दाश्त नहीं
करेगा. वह मदद करेगा. उसने दोस्तों को भी यह
घटना बतायी और सभी ने इस बात को स्वीकार
किया कि आज अगर हम किसी की बहन की रक्षा
करते हैं, तो ही कल कोई हमारी बहन की रक्षा
करेगा.
उसने अपनी बहन को कहा कि आज तुम्हारी वजह
से मुङो समझ आया कि मैंने उस लड़की की मदद न
कर कितना बड़ा गुनाह किया. आज जिस तरह तुम
लोगों से मदद की उम्मीद कर रही थी, वैसे ही वह
भी मुझसे कर रही थी. मैं गलत था.
बात पते की..
- जब भी किसी लड़की को मुसीबत में देखें, तो यही
सोचें कि वह आपकी बहन है. यह विचार तेजी से
फैलना जरूरी है. तभी बहनें सुरक्षित रहेंगी.
- आज आप किसी की बहन को मुसीबत में छोड़
कर चले जायेंगे, तो ये उम्मीद बिल्कुल न रखें कि
कोई आपकी बहन की मदद को आगे आयेगा.

जिंदगी
1- जीवन और मृत्यु का कोई इलाज नही, इसलिए इस बीच के इंटरबेल का आनंद लिजिए
2- मौत जीवन का अतं करती हैँ, रिश्ते का नहीँ।
3- कभी-कभी जिदँगी मेँ सबसे आसान सवाल ही जवाब देने मेँ सबसे कठिन लगने लगता हैँ।
4- किसी इन्सान को जानने और समझने में बहुत फर्क होता है...
5- जब तक हम ये जान पाते हैँ कि जिदंगी क्या है तब तक ये आधी खत्म हो चुकी होती हैँ।
6- मुझे मौत का भय नही, मैँ तो बस उस वक्त वहाँ होना नही चाहता... !!

Monday, 7 September 2015
हक़ीकत 2
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।
एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।
जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
बहुत ही खूबसूरत लाईनें..
किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
डरिये वक़्त की मार से,
बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!
अकल कितनी भी तेज ह़ो,
नसीब के बिना नही जीत सकती..!
बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,
कभी बादशाह नही बन सका...!!"
"ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो
एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!
इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!
रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है !!! "

हक़ीकत 1
बड़ी ही गहरी बात लिख दी है
किसी शक्शियत नें ...
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में ,
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।
सजाया गया था चमचमाते झालर से मस्जिद और चमकते चादर से दरगाह को,
बाहर एक फ़कीर को भूख और ठंड से तड़प के मरते देखा है ।।
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,
पर बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए ,
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को,
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।
जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन ,
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।
जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी , आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है ।
दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है ।
मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो ,
जिसे खुदको काल सर्प, तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है।
जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।
बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,
अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।
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आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,
अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।
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गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है
उन्होंने देख लिया कि, इंसान हमसे अच्छा नोंचता है।
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कुत्ते कोमा में चले गए, ये देखकर,
क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान देखा है ।

मैं क्या करूँ !
खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे।
क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ...!
