Tuesday, 17 November 2015

निश्चित सफलता के सूत्र।

★ जीतने के लिए आपमें एक गुण हाेना ही चाहिए। वह है निश्चित उद्देश्य – यह ज्ञान कि आप क्या चाहते हैं – और उसे हासिल करने की तीव्र इच्छा।
– नेपोलियन हिल

★ याेजना बनाने का मतलब भविष्य काे वर्तमान में लाना है, ताकि आप उसके बारे में इसी वक़्त कुछ कर सकें।
– एलन लकीन

★ हमारे पास हमेशा पर्याप्त समय रहता है, बशर्ते हम उसका सही इस्तेमाल करें।
– जाेहानन वाँल्फ़गैंग वाँन गेटे

★ हर महान व्यक्ति उसी अनुपात में महान बना है और हर सफल व्यक्ति उसी अनुपात में सफल हुआ है, जिस अनुपात में उसने अपनी शक्तियाँ एक ख़ास क्षेत्र में सीमित की हैं।
– आँरिसन स्वेट मार्डन

★ हर दिन बड़े काम पुरे करने का समय निकालें। वे हर दिन के कामाें की याेजना पहले से बनाएँ। सिर्फ़ वे छाेटे काम ही पहले करें, जिन्हें सुबह तत्काल निबटाना ज़रूरी हाे। फिर सीधे बड़े कामाें की ओर बढ़ें और उन्हें पूरा करने में जुट जाएँ।
– बोर्डरूम रिपोटर्स

★ सफलता का पहला नियम है एकाग्रता – सारी ऊर्जा काे एक बिंदु पर केंद्रित करना और दाएं-बाएं देखे बिना उस बिंदु तक जाना।
– विलियम मैथ्यूज़

★ जब हर शारीरिक और मानसिक संसाधन केंद्रित हाे जाता है, ताे समस्या सुलझाने की मानवीय शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
– नॉर्मन विंसेंट पील

★ आप जाे कर सकते हैं करें, जाे उपलब्ध है उसी से करें, जहाँ भी आप हैं वहीं से करें, बस कर डालें।
– थियाेडाेर रूज़वेल्ट

★ आपकी योग्यता का स्तर चाहे जाे हाे, आपमें इतनी ज्यादा संभावनाएँ हैं कि आप एक जीवन में उन तक नहीं पहुँच सकते।
– जेम्स टी. मैके

★ जिन लाेगाें में तुलनात्मक रूप से कम शक्तियाँ हाेती हैं, वे भी बहुँत कुछ हासिल कर सकते हैं, बशर्ते वे पुरी तरह जुट जाएँ और बिना थके एक वक़्त में एक ही चीज़ करते रहें।
– सैम्युअल स्माइल्स

★ आपका काम चाहे जाे भी हाे, उसमें सफलता का इकलाैता अचूक तरीक़ा अपेक्षा से ज्यादा और बेहतर सेवा देना है।
– आँग मैन्डिनाे

★ अपना काम करें; लकिन सिर्फ अपना काम ही नहीं, बल्कि ठाठ-बाट पाने के लिए कुछ ज्यादा भी करें – यह थाेड़ा ज्यादा भी बाक़ी जितना ही महत्त्वपूर्ण है।
– डीन ब्रिग्स

★ अपने सारे विचार उस काम पर केंद्रित कर लें, जाे फिलहाल आपके हाथ में हाे। सूरज की किरणें तब तक कुछ नहीं जला पातीं, जब तक कि उन्हें केंद्रित न किया जाए।
– अलेक्ज़ेडर ग्राहम बेल

★ सफलता की पहली शर्त है, बिना थके अपनी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा काे किसी एक समस्या पर लगाने की योग्यता।
– थॉमस एडिसन

★ अपने सारे संसाधन जुटा लें, सभी इंद्रिया चाैकस कर लें, तमाम ऊर्जा समेट लें, सारी क्षमताएँ किसी एक क्षेत्र में माहिर बनने पर केंद्रित कर लें।
– जॉन हैग्गई

★ जबर्दस्त राेमांच, विजय और रचनात्मक कर्म के राेचक उत्साह में ही इंसान काे चरम सुख मिलता है।
– एंटाइन डे सेंट एक्ज़ुपरी

★ ज़िंदगी की रफ्तार बढ़ाने के अलावा भी इसमें बहुँत कुछ है।
– गांधी

★ शुरूआत में आदत एक अदृश्य धागे जैसी हाेती है, लेकिन जब भी हम उस काम काे दाेहराते हैं, ताे हम उसमें एक और रेशा जाेड़कर धागे काे मज़बूत कर लेते हैं और यह सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक कि आदत माेटी रस्सी बनकर हमें कसकर बाँध नहीं लेती – हमारे विचाराें और कामाें काे।
– ओरिसन स्वेट मार्डन

★ सीमित लक्ष्याें पर अपनी सारी ऊर्जा केंद्रित करने से आपके जीवन में जितनी शक्ति आती है, उतनी किसी दूसरी चीज़ से नहीं आती।
– नीडाे क्यूबीन

★ इंतज़ार न करें। समय कभी “बिलकुल सही” नहीं हाेगा। वहीं से शुरु कर दें, जहाँ आप खड़े हैं। उन्हीं साधनाें से काम करें, जाे आपके पास माैजूद हैं। रास्ते में आपकाे बेहतर साधन अपने आप ही मिल जाएँगे।
– नेपाेलियन हिल

★ यही सच्ची शक्ति का रहस्य है। सतत अभ्यास से सीखें कि किसी पल में अपने संसाधनाें काे किसी निश्चित बिंदु पर किस तरह एकत्रित और एकाग्र किया जाता है।
– जेम्स एलन

Sunday, 8 November 2015

स्त्री

तस्वीर मत बनो,जो सजा ले कोई भी तुम्हे अपने ड्राइंग रूम में।
नर्तकी मत बनो, कि कोई भी नचा ले तुम्हे अपने दरबार जैसे समारोह में।
मत करो ऐसा अभिनय, जो बना दे तुम्हे वैशाली की नगर वधु।
मत बनाओ ऐसी भंगिमाएं, जिन से विद्ध हो जाये
कोई पौरुष और समेट ले तुम्हे अपने अंक में।
क्यों बनती हो उर्वशी और मेनका दूसरों के इशारों पर नाचने के लिए।
नही, नही मैं तुम्हारी प्रगति का प्रतिरोधी नही हूँ।
तुम उड़ाओ यान, करो वैज्ञानिक अनुसंधान बटाओ अपने सहचर का हाथ निभाओ अपनी भागीदारी समानता के लिए ,और सम्मलित हो जाओ वरदायिनी बन कर किसी की वेदना में।
उठाओ शस्त्र ,बनो दुर्गा,दुनिया को मंदिर बनाने के लिए
क्योंकि तुम शक्ति हो,मातृ शक्ति , विभव शक्ति और संहार शक्ति का सम्मलित रूप - हे स्त्री !

कितना भयंकर आश्चर्य है ?

अब यकीन हो गया,
लड़कियां, इतनी सरल हृदय होती है की,
छोटी- छोटी बातों पर भी खिलखिला कर
हॅंसने लगती लगती है,
और लोग ख़ामख़ाह ही,
उनकी हँसी का कोई ख़ास अर्थ निकलने में लग जाते है,
लड़कियां तो कहीं एक छोटे बच्चे
को रोता हुआ देख कर भी,
हुलस कर हँसने हुए कहती है,
"अरे देख रोता हुआ कितना प्यारा लग रहा है"
तो कभी चलायमान सीड़ियों पर,
ज़ो नीचे से उपर जाती है,
उपर से एक- दो कदम पैर रख कर,
ठहाका लगा कर हँस पड़ती है,
मेरी डेढ़ साल की बेटी,
जैसे ही देखती है की, कोई उसका फोटो खींच रहा है,
खट से अपनी बतीसी चमका देती है,
सच, कितना आसान है,
लड़कियों को हँसाना,
और कितना भयंकर आश्चर्य है की,
इतना आसान होते हुए भी,
असंख्यों लड़कियों कि हँसी,
ना जाने कहाँ गायब हो गई है।

हर घड़ी सुहागन लगती है

दूर तलक तक झाँक के देखो,हर घडी सुहागन लगती है।
सिन्दूर छुपी उस माँग को देखो,हर कड़ी अभागन लगती है।
किस मजहब की बाते करते,कैसी है ये निर्मोह लहर,
सच्चे मन से देखो तो,वेश्या भी पावन लगती है।
गर श्वेत,हरा या केसरिया,तुमको ना भाते तो सोचो,
गलत नहीं फिर देखो तो,सीता भी रावन लगती है।
किस मजहब पे मरते इंसा,ये कौम हुकूमत बंद करो,
जरा गौर से देखो तो,बिटिया भी मनभावन लगती है।
गर नहीं मिलाना कन्धा हमसे,तो कन्धे ना टकराओ यूं,
जरा मिलाओ दूध तो देखो,दही भी जामन लगती है।
गर आंसू ना पोंछ सको तो,खूँ बहाना नाजायज,
इक बार जरा करके देखो तो,मोहब्बत भी सावन लगती है।
हो आजादी तुम्हे मुबारक,पर इतना ध्यान रहे .......,
संगदिली हमेशा साथ रहे तो,हिजरत भी आँगन लगती है।

राधे और कृष्ण : क्यों नहीं बंधे विवाह बंधन में? : भाग – 1

जब कृष्ण के प्रति राधा का प्रेम समाज को चुभने लगा तो घर से उनके निकलने पर रोक लगा दी गई। लेकिन कृष्ण की बंसी की धुन सुनकर राधा खुद को रोक नहीं पाती थी। यह देखकर उनके घरवालों ने उन्हें खाट से बांध दिया था। फिर क्या हुआ आगे ? पढ़िए और जानिए-

पूर्णिमा की शाम थी। राधे को बांसुरी की मधुर आवाज सुनाई दी। उन्हें लगने लगा कि अपने शरीर को छोडक़र बस वहां चली जाएं। कृष्ण को राधे की इच्छा और उस पीड़ा का अहसास हुआ, जिससे वह गुजर रही थीं। वह उद्धव और बलराम के साथ राधे के घर गए और उसकी छत पर जा चढ़े।


उन्होंने राधे के कमरे की खपरैल को हटाया, धीरे-धीरे नीचे उतरे और राधे को आजाद कर दिया। इतने में ही बलराम भी छत से नीचे आ गए। उन्होंने कृष्ण और राधे दोनों को उठाया और बाहर आ गए। इसके बाद सभी ने पूरी रात खूब नृत्य किया। अगली सुबह जब मां ने देखा तो राधे अपने बिस्तर पर सो रही थीं।

पूर्णिमा का यह अंतिम रास था। कृष्ण ने माता यशोदा से कहा कि वह राधे से विवाह करना चाहते हैं। इस पर मां ने कहा, ‘राधे तुम्हारे लिए ठीक लडक़ी नहीं है; इसकी वजह है कि एक तो वह तुमसे पांच साल बड़ी है, दूसरा उसकी मंगनी पहले से ही किसी और से हो चुकी है। जिसके साथ उसकी मंगनी हुई है, वह कंस की सेना में है। अभी वह युद्ध लडऩे गया है। वह जब लौटेगा तो अपनी मंगेतर से विवाह कर लेगा। इसलिए तुम्हारा उससे विवाह नहीं हो सकता। वैसे भी जैसी बहू की कल्पना मैंने की है, वह वैसी नहीं है। इसके अलावा, वह कुलीन घराने से भी नहीं है। वह एक साधारण ग्वालन है और तुम मुखिया के बेटे हो। हम तुम्हारे लिए अच्छी दुल्हन ढूंढेंगे।’ यह सुनकर कृष्ण ने कहा, ‘वह मेरे लिए सही है या नहीं, यह मैं नहीं जानता। मैं तो बस इतना जानता हूं कि जब से उसने मुझे देखा है, उसने मुझसे प्रेम किया है और वह मेरे भीतर ही वास करती है। मैं उसी से शादी करना चाहता हूं।’

मां और बेटे के बीच यह वाद-विवाद बढ़ता गया। माता यशोदा के पास जब कहने को कुछ न रहा तो बात पिता तक जा पहुंची। माता ने कहा, ‘देखिए आपका बेटा उस राधे से विवाह करना चाहता है। वह लडक़ी ठीक नहीं है। वह इतनी निर्लज्ज है कि पूरे गांव में नाचती फिरती है।’ उस वक्त के समाज के बारे में आप अंदाजा लगा ही सकते हैं। कृष्ण के पिता नंद बड़े नरम दिल के थे, अपने पुत्र से बेहद प्रेम करते थे। उन्होंने कृष्ण से इस बारे में बात की, लेकिन कृष्ण ने उनसे भी अपनी बात मनवाने की जिद की। ऐसे में नंद को लगा कि अब कृष्ण को गुरु के पास ले जाना चाहिए। वही उसे समझाएंगे।

गर्गाचार्य और उनके शिष्य संदीपनी कृष्ण के गुरु थे। गुरु ने कृष्ण को समझाया, ‘तुम्हारे जीवन का उद्देश्य अलग है। इस बात की भविष्यवाणी हो चुकी है कि तुम मुक्तिदाता हो। इस संसार में तुम ही धर्म के रक्षक हो। तुम्हें इस ग्वालन से विवाह नहीं करना है। तुम्हारा एक खास लक्ष्य है।’ कृष्ण बोले, ‘यह कैसा लक्ष्य है, गुरुदेव? अगर आप चाहते हैं कि मैं धर्म की स्थापना करूं, तो क्या इस अभियान की शुरुआत मैं इस अधर्म के साथ करूं? आप समाज में धार्मिकता और साधुता स्थापित करने की बात कर रहे हैं। क्या यह सही है कि इस अभियान की शुरुआत एक गलत काम से की जाए?’ गुरु गर्गाचार्य ने कहा, ‘धर्मविरुद्ध काम करने के लिए तुमसे किसने कहा?’

कृष्ण ने कहा, ‘आठ साल पहले जब मुझे ओखली से बांध दिया गया था, तो यह लडक़ी मेरे पास आई थी। तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी।

उस पल से मैं ही उसके जीवन का आधार बन चुका हूं। उसका दिल, उसके शरीर की हर कोशिका मेरे लिए ही धडक़ती है। एक पल के लिए भी वह मेरे बिना नहीं रही है। अगर एक दिन मुझे न देखे तो वह मृतक के समान हो जाती है। वह पूरी तरह मेरे भीतर निवास करती है और मैं उसके भीतर। ऐसे में अगर मैं उससे दूर चला गया, तो वह निश्चित ही मर जाएगी। मैं आपको बताना चाहता हूं कि जब सांपों वाली घटना हुई, अगर मैं वहीं मर जाता तो गांव में दुख तो बहुत से लोगों को होता, लेकिन राधे वहीं अपने प्राण त्याग देती।’

देखो, हर कोई सोचता है कि कृष्ण अजेय हैं, वह मर नहीं सकते, लेकिन खुद कृष्ण अपनी नश्वरता के प्रति पूरी तरह सजग थे।

गर्गाचार्य ने कहा, ‘तुम्हें नहीं लगता, तुम पूरी घटना को कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ाकर बता रहे हो?’ कृष्ण ने कहा, ‘नहीं, मैं बढ़ा चढ़ाकर नहीं बता रहा हूं। यही सच है।’ गर्गाचार्य ने दोबारा कहा, ‘तुम मुक्तिदाता हो, तुम्हें धर्म की स्थापना करनी है।’ कृष्ण बोले, ‘मैं मुक्तिदाता नहीं बनना चाहता। मुझे तो बस अपनी गायों से, बछड़ों से, यहां के लोगों से, अपने दोस्तों से, इन पर्वतों से, इन पेड़ों से प्रेम है और मैं इन्हीं के बीच रहना चाहता हूं।’

खूबसूरती !

हर किसी को अपनी खूबसूरती पर घमण्ड होता है!

मै आज आपको खूबसूरती की परिभाषा बताता हूँ!!

खूबसूरत है वो लब!
जिन पर, दूसरों के लिए कोई दुआ आ जाए !!

खूबसूरत है वो दिल!
जो, किसी के दुख मे शामिल हो जाए !! .

खूबसूरत है वो जज़बात!
जो, दूसरो की भावनाओं को समज जाए !! .

खूबसूरत है वो एहसास!
जिस मे, प्यार की मिठास हो जाए !! .

खूबसूरत है वो बातें!
जिनमे, शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ !!

खूबसूरत है वो आँखे!
जिनमे, किसी के खूबसूरत ख्वाब समा जाए !!

खूबसूरत है वो हाथ!
जो किसी के, लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए !!

खूबसूरत है वो सोच!
जिस मैं, किसी कि सारी ख़ुशी झुप जाए!! .

खूबसूरत है वो दामन!
जो, दुनिया से किसी के गमो को छुपा जाए !!

खूबसूरत है वो आंसू!
जो, किसी और के गम मे बह जाए…!!

संतानहीनता: अभिशाप नहीं वरदान है


प्रश्नकर्ता: एक स्त्री होते हुए बच्चे के बिना मैं अधूरा महसूस करती हूं। क्या मैंने कुछ गलत किया है कि मुझे मां बनने का सौभाग्य नहीं मिला?
उत्तर:-

यह सोच ही गलत है कि मां बनने के बाद आपका जीवन परिपूर्ण होगा। आपको बस आपके हारमोन संबंधी स्रावों ने धोखा दिया है। आप अपनी बुद्धि से काम नहीं ले रही हैं। अगर संतान पैदा करने से संतुष्टि होती, तो अब तक दुनिया परिपूर्ण हो गई होती? बहुत से लोगों ने दर्जन भर बच्चे पैदा कर लिए हैं। क्या वे किसी तरह से पूर्ण हैं? बिल्कुल नहीं।

बच्चे को जन्म दिए बिना एक स्त्री का जीवन अधूरा होता है, यह समाज की बनाई हुई एक बहुत पक्षपातपूर्ण धारणा है।

बच्चे बिना जीवन अधूरा नहीं

तो क्या इसका यह मतलब है कि किसी को बच्चे नहीं पैदा करने चाहिए? बात यह नहीं है। जब आप स्वाभाविक रूप से एक बच्चे को जन्म देते हैं, तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर आप बच्चे को जन्म देने में असमर्थ हैं, तो अपने आप को अनावश्यक रूप से दुखी न करें। बच्चे को जन्म दिए बिना एक स्त्री का जीवन अधूरा होता है, यह समाज की बनाई हुई एक बहुत पक्षपातपूर्ण धारणा है। भारत में एक समय ऐसा भी था जब एक संतानहीन स्त्री को हर किसी के लिए अपशकुनी माना जाता था। अगर कोई सिर्फ संतान पैदा न कर पाने पर अपशकुनी होता है, तो जो लोग अध्यात्म की राह पर चले और ऐसी चीजों के बारे में कभी परवाह ही नहीं की, क्या वे सभी अपशकुनी थे? सारे साधु-संन्यासी, विवेकानन्द, ईसामसीह ऐसे ही लोग थे। इनकी तो आज पूजा की जाती है।

आप असल में बच्चा क्यों चाहते हैं?

इसलिए क्योंकि कुछ समय बाद, आपके जीवनसाथी के साथ आपका जुड़ाव उतना नहीं रह जाता और आप उस जुड़ाव की कमी महसूस करने लगते हैं। इसलिए आप खेलने के लिए एक नया खिलौना चाहते हैं और आपको लगता है कि बच्चा अच्छा रहेगा। आपको अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बच्चे को पैदा नहीं करना चाहिए, यह एक बच्चे को दुनिया में लाने का अच्छा तरीका नहीं है। बदकिस्मती से 99 फीसदी बच्चे दुनिया में इसी तरह आते हैं। बच्चे पैदा करने पर आप पूर्ण नहीं होंगे। आप असल में एक दूसरे जीवन के साथ जुड़ने की एक गहरी भावना का अनुभव करना चाहते हैं। जरूरी नहीं है कि यह जुड़ाव जैविक संबंध से प्रेरित हो। इसे आपकी जागरूकता और समझ से भी सामने लाया जा सकता है।

बहुत से बच्चे हैं, जिन्हें पालने की जरूरत है

मान लीजिए एक स्त्री किसी बच्चे को जन्म देती है, ठीक उसी समय उसके बच्चे को किसी और के बच्चे से बदल दिया जाए, तब भी वह वैसा ही अनुभव करेगी, जैसा वह अपने बच्चे के साथ करती। अपनेपन का आधार आपका अपना खून नहीं है। मनुष्य जो अपनापन महसूस करता है, वह भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक नजदीकी के कारण होता है। इसलिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह बच्चा आपसे पैदा हुआ है या किसी और से? आप उस बच्चे को कितनी गहराई से स्वीकार करते हैं और अपना हिस्सा मानते हैं, इस पर वह अनुभव निर्भर करता है। यह मनोविज्ञान है, जीवविज्ञान नहीं। इसलिए बच्चा न होने को इतना बड़ा मुद्दा न बनाएं और समाज के दबावों के आगे सिर न झुकाएं। अगर आप वाकई एक बच्चे को पालना चाहती हैं, तो ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्हें पालने की जरूरत है। इस मामले में कुछ करना चाहिए। मैं तो कहूंगा कि अगर कोई दंपति बच्चा पैदा करने में सक्षम भी है, तो भी उन्हें कोई बच्चा गोद लेना चाहिए क्योंकि इससे मनोवैज्ञानिक क्षितिज का खूब विस्तार होगा।

  इसलिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह बच्चा आपसे पैदा हुआ है या किसी और से? आप उस बच्चे को कितनी गहराई से स्वीकार करते हैं और अपना हिस्सा मानते हैं, इस पर वह अनुभव निर्भर करता है। यह मनोविज्ञान है, जीवविज्ञान नहीं।

नि:संतान महिलाएं -पृथ्वी के लिए वरदान

फिलहाल, मानव जाति के विलुप्त होने का कोई खतरा नहीं है। असल में, जनसंख्या का विस्फोट हो रहा है। आज सभी नि:संतान दंपतियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए क्योंकि हमने इस देश में ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जहां मानव जन्म एक अभिशाप हो गया है। जो देश के लिए अभिशाप है, वह हर किसी के लिए अभिशाप है। दुनिया की जनसंख्या सात अरब पार कर रही है, जिसमें आधी मानव जाति भयावह स्थितियों में जी रही है – लाखों बच्चे आवश्यरक भोजन और कपड़ों के बिना मर रहे हैं। जब ऐसी स्थिति है, तो नि:संतान महिलाएं इस पृथ्वी के लिए वरदान हैं। वे बहुत बड़ा योगदान कर रही हैं। यह बात असंवेदनशील और गैरजिम्मेदाराना लग सकती है, लेकिन मैं आपको समझाना चाहता हूं कि किसी बच्चे के लिए अच्छे से जीने की जरूरी संभावनाएं पैदा किए बिना इस दुनिया में बच्चे को लाना सबसे असंवेदनशील और गैरजिम्मेदाराना काम है।

प्यार कुछ भी नही है बस तेरी मेरी कहानी है !

सुबह उठ कर आँखे खोलने से पहले जिसका चेहरा देखने की इच्छा हो,वो प्यार है… 
मंदिर में दर्शन करते किसी के पास खड़े होने का एहसास हो ,वो प्यार है..
पुरे दिन की थकान जिसके साथ बैठने की कल्पना से ही दूर हो जाए, वो प्यार है…
सर किसी की गोद में रखकर लगे की मन हल्का हो गया,वो प्यार है...
लाख कोशिश करके दिल जिससे नफरत ना कर सके और ना ही भूल सके,वो प्यार है...
इसे पढ़ते वक़्त जिस किसी की भी याद आये, वो प्यार है ....