दूर तलक तक झाँक के देखो,हर घडी सुहागन लगती है।
सिन्दूर छुपी उस माँग को देखो,हर कड़ी अभागन लगती है।
किस मजहब की बाते करते,कैसी है ये निर्मोह लहर,
सच्चे मन से देखो तो,वेश्या भी पावन लगती है।
गर श्वेत,हरा या केसरिया,तुमको ना भाते तो सोचो,
गलत नहीं फिर देखो तो,सीता भी रावन लगती है।
किस मजहब पे मरते इंसा,ये कौम हुकूमत बंद करो,
जरा गौर से देखो तो,बिटिया भी मनभावन लगती है।
गर नहीं मिलाना कन्धा हमसे,तो कन्धे ना टकराओ यूं,
जरा मिलाओ दूध तो देखो,दही भी जामन लगती है।
गर आंसू ना पोंछ सको तो,खूँ बहाना नाजायज,
इक बार जरा करके देखो तो,मोहब्बत भी सावन लगती है।
हो आजादी तुम्हे मुबारक,पर इतना ध्यान रहे .......,
संगदिली हमेशा साथ रहे तो,हिजरत भी आँगन लगती है।
लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
Sunday, 8 November 2015
हर घड़ी सुहागन लगती है

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