मैंने आख़री बार कब बहन को फ़ोन मिलाया था कुछ धुन्दला सा याद है
मैंने आख़री बार कब उसे खूब हँसाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
सुबह स्कूल जाने से पहले मेरा नाश्ता त्यार रहता था
मैंने आखरी बार कब पहला निवाला उसके मुँह में डाला था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो मेरे स्कूल की छुटियों का काम कर दिया करती थी
मैंने आख़री बार कब शुक्रिया अदा जताया था, कुछ धुन्दला सा याद है
गर्मियों के वो दिन जब मैं खेल के घर लौटता था और वो शरबत बना दिया करती थी
मैंने आखरी बार कब उसकी तारीफ करके सरहाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
मेरी हर ज़िद्द के लिए उसने अपनी गुल्क तोड़ी है
मैं कब बिना किसी वजा के उसके लिए तोहफा लाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो मुझे बाप की गालियों और मार से बचाया करती थी
मैंने कब उसकी ख्वाइशों पे असर आज़माया था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो मेरी बड़ी फ़िक्र किया करती थी नाजाने मैं क्यों ना समझा
मेरे अंदर दबा उसके लिए बेहद प्यार का एहसास कब दिलाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो जब भी आती है मैं अब उसे दीदी या बहन कहकर पुकारता हूँ
मैंने आखरी बार कब उसे चुड़ैल या भूतनी कह कर चिढ़ाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
डोली की विदाई वक़्त सारे रो रहे थे इसलिए मैं भी रो पड़ा
मैंने ये झूठ क्यों फ़रमाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
अब ये आलम है के मैं उसी घर में रहता हूँ और वो कभी कभी आया करती है
तेरी बहुत याद आती है कहकर कब सीने से लगाया था, कुछ धुन्दला सा याद है ~
लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
Tuesday, 26 April 2016
सभी बहनों को समर्पित

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