तुम ही मेरी गंगोत्री, तुम ही मेरी गंगासागर !
अब तुम ही बता दो, मुझे कहाँ डुबकी लगाना है !!
लोग कहते हैं कि तुम्हारा अंदाज़ बदला बदला सा हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब ये अंदाज़ आया है..! A6
मेरी रश्के-कमर , तूने पहली नजर, जब नजर से मिलायी मज़ा आ गया
बर्क़ सी गिर गयी , काम ही कर गयी, आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया ||
रश्क-ए-क़मर (रस्के-कमर) = इतने खूबसूरत की चाँद भी जलता हो जिसकी खूबसूरती से
बर्क़ = बिजली गिरना
जाम में घोलकर हुस्न कि मस्तियाँ, चांदनी मुस्कुरायी मज़ा आ गया |
चाँद के साये में ऐ मेरे साक़िया, तूने ऐसी पिलायी मज़ा आ गया ||
नशा शीशे में अगड़ाई लेने लगा, बज्मे-रिंदा में सागर खनकने लगा |
मैकदे पे बरसने लगी मस्तिया, जब घटा गिर के छायी मज़ा आ गया ||
बे-हिज़ाबाना वो सामने आ गए, और जवानी जवानी से टकरा गयी ||
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से , देखकर ये लड़ाई मज़ा आ गया
बे-हिज़ाबाना = बिना नक़ाब या परदे के
आँख में थी हया हर मुलाकात पर , सुर्ख आरिज़ हुए वस्ल की बात पर |
उसने शरमा के मेरे सवालात पे, ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया ||
आरिज़ = कपोल, वस्ल = मिलने
शैख़ साहिब का ईमान बिक ही गया, देखकर हुस्न-ऐ-साक़ी पिघल ही गया |
आज से पहले ये कितने मगरूर थे, लूट गयी पारसाई मज़ा आ गया ||
पारसाई = पवित्रता, छूकर किसी को सोना बना देने का वरदान ||
ऐ “फ़ना” शुक्र है आज वादे फ़ना, उस ने रख ली मेरे प्यार की आबरू |
अपने हाथों से उसने मेरी कब्र पर, चादर-ऐ-गुल ल चढ़ाई मज़ा आ गया ||
चादर-ऐ-गुल = फूलों की चादर या गुलदस्ता
अपनें #जेवर की बक्से में रख कर छुपा लो मुझे..
बाहर की दुनियाँ में बहुत खरीद बिक्री है...
कुछ वक़्त साथ रहेंगें मेरी भी #क़ीमत बढ़ जायेगी..
दहेज़ गरीबी हटाओ कार्यक्रम भी है।
दहेज़ लेनें के बाद जेंटलमैन रातो_रात अमीर हो जाता है।
एक तरफ कोई मेहनत के पसीने से रुपया गिनता है वहीं दूसरी तरफ कोई थूक लगा कर रुपया गिनता है।
जिस प्रकार तीन बार नौकरी नौकरी नौकरी कहनें से कुछ भी नही होता है। उसी प्रकार तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ कहनें से कुछ नही होता है, बस फ़र्क इतना है कि खुल्ला सांड बन जाता है।
आँखों देखी घटना है:-- मेरे ही गाँव में मुस्लिम परिवार में करीम की माई रहती है और करीम बाप को तब तक झाड़ू से झाड़ती है जबतक की झाड़ू का पूरा सिक खुल के ज़मीन पर बिखर न जाये।यह घटना घर के अंदर हो या सड़क पर दोनों जगहों पर किसी तरह का भेदभाव नही करती है झाड़ू चलाने की गति में, उसे घुमाने में, उसपर लगनें वाले बल पर किसी तरह का बदलाव पसंद नही करती है ।करीम बाप को इतनी भी हिम्मत नही है की वह सिर्फ़ तीन बार बोल दे मुझे छोड़ दो! छोड़ दो! छोड़ दो!.....
क्योंकि करीम माई का बाहुबल तथा उसका अभिव्यक्ति की आजादी का मुकाबला पुरे टोला और गाँव में करनें वाला कोई नही है।
अब मुद्दा पर आता हूँ..
जिस दिन मुस्लिम महिला, पुरुष के तुलना में ज्यादा मजबूत मानसिक तौर पर, आर्थिक तौर पर, बाहुबल के तौर पर, शिक्षा के क्षेत्र में, अभिव्यक्ति में हो जायेगी उसी दिन से जो मुल्ला अभी फरमान सुनाता है उसका दाढ़ी का एक एक बाल नोच लेगी।
तलाक़ भी देख कर दिया जाता है कि सामनें वाली महिला कितनी लाचार, वेवश, कमजोर, अशिक्षित, पारिवारिक स्थिति, आर्थिक निर्बलता से घिरी हुई है और जहां पर रहती है वहां का सामाजिक संरचना कैसा है आदि सब ध्यान में रख कर तलाक जैसे शब्द का लाभ उठाता है।
मुल्ला को पता नही होता है कि उसकी भी बेटी, बहन, पोती, भान्जी, भतीजी, माँ, नानी, दादी, काकी, चाची, मौसी,बुआ अपनी पूरी जिंदगी भर इन तीन शब्द के तले दबी रहती है और इसके लिए क्या क्या नही करना, सुनना, सहना पड़ता होगा...।
#और_अंत_में....
तलाक कुछ भी नही बस एक मात्र उच्च कोटि का शोषण का माध्यम है।
हम सब मिलकर तमाम धार्मिक, सामाजिक, परम्परागत रीतिरिवाज, रूढ़िवादी नियम या कानून को लात मार के फेंक देगें जो मनुष्य का शोषण का माध्यम हो तथा वह विकास के पथ का बाधक हो और हमारी स्वतंत्रता छिनता हो।
बाजार में एक नया शब्द चला रहा है #BP जिसका प्रयोग एवं उपयोग भोली सूरत वाले अपनें चोचला प्रकार के तर्क के आधार पर धुँआधार फायदा उठा रहा है।
मैं बात कर रहा हूँ BP यानि कि बलत्कार प्यार के आड़ में! गाँव घर की भाषा में BP को ही बलत्कारी पुरूष भी कहते हैं।
हमारे आसपास कुछ सरा हुआ महाघटिया आदमी होता है, जो महान आत्मा का रूप धारण किये रहता है और अपनें चोंच को हमेशा सी कर रखता है ताकि ऱाज बाहर ना हो सके।
फ़ेयर एंड लवली, बोरो प्लस, सुखा पॉउडर, जूता-मौजा के बिना यह अपनें घोसले से बाहर कभी निकलता भी नही है।
लड़की इसके कुतयापा पर फ़िदा हो जाती है और लड़का अपने पूर्वअनुभव के जाल में फिर से एक नई मछली को फसाता है। जिसे विश्वास के कढ़ाई में प्यार के तेल पर फ्राई कर खाता है। यहाँ तक कि शादी का वादा भी करता है और बाद में धर्म,जाति, परिवार, और पिताजी सरणम् गच्छामि! बोलता है।
मतलब बिल्कुल साफ़ है ये जो महान आत्मा हैं हमारे गली मोहल्ला घूम घूम कर गंदगी और दुर्गन्ध फैलाते रहता है और जब इसकी अपनी खुद कि शादी की बारी आये तो वर्जिन पत्नी का डिमांड रखता है या उसकी खोज करता है। यह व्यक्ति अपनी सुतयापा की सारी हदे पार करता है।
और अंत में...
इस तरह का आदमी जहाँ कहीं मिले घनघोर तरीके से विरोध करें, नही तो यह महान आत्मा जो मुखोटा पहन कर घूमता है, साधरण आदमी का उपयोग कर अपने अंजाम को अपने मंजिल तक जरूर पहुँचाता है। इसलिए सावधान रहें और तावरतोड़ विरोध करें।
मोहब्बत क्या होती है..?
यदि कृष्ण से पूछोगे तो वो दिल लगाना ही कहेगा!
गलती से मीरा से पूछोगे तो वो इंतज़ार करना ही कहेगी !!
सुकून का एक पल पानें के लिए घर से निकले..
बदले में शाम तक तन्हाई का पूरा शहर ही मिल गया।
जीना है एक दिन इसके लिए जी रहे थे।
क्या पता था मुझे यह एक दिन मौत तक पहुँचा देगी।।
कमबख्त जिंदगी भी शतरंज जैसी हो गई है
नही खेले तो द्रौपदी की तरह बिना खेले हारनें का डर।
अगर शतरंज की चाल चलो तो अपनों का खोनें का डर।।
अभी राज्यरानी एक्सप्रेस में हूँ पटना से जिला खगड़िया जा रहा हूँ..
यह ट्रेन गंगा के किनारे से शुरू होती है और ताल क्षेत्र होते हुए कोसी के आँचल तक भ्रमण कराती है। दूसरी ओर यह ट्रेन एक विकासशील क्षेत्र से पिछड़े क्षेत्र को जोड़ने का काम करती है।
सीट नही मिला है मेरी इस हालत को देख कर एक सज्जन बोले पेपर बिछा कर नीचे बैठ जाओ नही तो यह भी नही मिलेगा।
मेरे बगल वाले ने बिहार के हालात पर राजनीति पर चर्चा शुरू करते हुए भ्रष्टाचार, शराबबंदी, लालू, बाढ़ पर अपना तीन-चार तीर छोर दिया है और इसके जबावी कार्यवाही में विपक्षी ने इसके तर्क को अपने चने के भुंजा के साथ चवा गया है..
एक युवक सीट की खोज में एक बूढ़े बाबा को अपना निशाना बनाया है, बाबा अपने झोले और दोनों पैर को सीट पर रख कर यात्रा का आनंद ले रहे थे अचानक अपनी इस सत्ता को खोते देख कर बाबा बीमार हो गयें हैं.... अब बीमारू बाबा और युवक में जंग छीर चूका है अब देखते है सीट युद्ध में कौन बाजी मरता है
और अंत में..
यह महारानी ट्रेन अपनी आदत के विपरीत चाल में चल रही है पता नही कब मुझे मेरी मंजिल पर पहुचायेगी...!
चुनाव में हारे हुए अरुण जेटली भैयाजी को वित्त मंत्रालय मिलनें पर आधी आबादी को अब ज़रूर दुःख हो रहा होगा।क्योंकि इनको समझ में नही आ रहा है की #सेनिटरी_नैपकिन महिलाओं की जरूरत है ना की इनकी लगान वसूली की सामान। जिससे वे अपना तिजोरी भर सके।
अभी भी अधिकांशतः ग्रामीण महिलाएं पैसे के आभाव में तथा सुविधा और सही जानकारी के आभाव में सेनिटरी नैपकिन का इस्तमाल नही कर पाती है।वहीं अभी भी महिलाओं को इसके खरीदारी में संकोच और समस्याएं होती है।
चूँकि यह कोई लग्ज़री या विलासता की वस्तु नही है इसलिए इसे GST से बहार कर के टैक्स-फ़्री करें। और स्वच्छ, स्वस्थ्य और प्रगतिशील समाज के निर्माण में अपना योगदान दें।
और अंत में
मंत्रीजी अपना सामाजिक जिम्मेदारी समझे और उनका निर्वाह करें।ऐसे भी महिलाएं छोटी-छोटी बात नही भूलती है और अगर इनकी मन की बात पूरी नही होगी तो समझो हिसाब बराबर अगले चुनाव में..!
हमे और जीने की चाहत ना होती
अगर तुम ना होते, अगर तुम ना होते
तुम्हे देख के तो लगता हैं ऐसे
बहारों का मौसम आया हो जैसे
दिखायी ना देती, अंधेरों में ज्योती
अगर तुम ना होते..
हमे जो तुम्हारा सहारा ना मिलता
भंवर में ही रहते, किनारा ना मिलता
किनारे पे भी तो, लहर आ डूबोती
अगर तुम ना होते..
न जाने क्यो दिल से, ये आवाज़ आयी
मिलन से हैं बढ़ के, तुम्हारी जुदाई
इन आँखों के आँसू ना कहलाते मोती
अगर तुम ना होते..
गीतकार : गुलशन बावरा,
गायक : किशोर कुमार,
संगीतकार : राहुलदेव बर्मन,
चित्रपट : अगर तुम ना होते - 1983
ग़ालिब!
मैं जिस दुनियां में रहता हूँ न,
यहां भोले और सीधे लोग बहुत दिखतें हैं
मैं तो अब तेरे दर का अपराधी हो गया क्योंकि?
मेरे पास खून से सना शाकाहारी खंजर नही।
#इरोम_शर्मिला नाम तो जानतें ही होगें जिसे पूरी दुनियाँ #आयरन_लेडी के नाम से जानती है उसे मात्र 90 लोग ही उसके विधानसभा क्षेत्र में जनता है इसे ही कहते हैं राजनीति।
जो अपने जीवन के एक हिस्सा सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए- अफस्पा) के खिलाफ 16 वर्ष तक भूख हड़ताल पर रहीं थी।यह वही अफस्पा कानून है जिसका जिक्र #फ़िल्म_हैदर में शाहिद कपूर ने चुस्पा शब्द से किया था। इस लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने अगस्त 2016 में अपनी भूख हड़ताल खत्म की थी। अक्टूबर, 2016 में उन्होंने पीपल्स रीसर्जेंस एंड जस्टिस एलांयस (पीआरजेए) का गठन किया और इस मार्च में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था। परिणाम आपको पता ही क्या हुआ है...
दोस्त हार-जीत की बात नही है यह जो 90 वोट ! अभी तक गले से नीचे नही उतर रहा है और ना ही दिमाग़ मानता है ना ही समझ पा रहा है।
और अंत में
इरोम शर्मिला मानवता के हक़ की लड़ाई में आपकी हमेशा जीत होगी और यह समाज आपका हमेशा ऋणी रहेगा।
हरामख़ोरी एक कला है। जिस में व्यक्ति हरामख़ोर से हरामख़ोरी तक के सफ़र में निपुणता हासिल करता है और बाद में अपने कारनामों के अनुभव और उम्र का तकाज़ा का प्रयोग करता है।
हरामख़ोर नामक प्राणी हमारे समाज में हमारे आसपास ही रहता है।वह कभी शिक्षक, पड़ोसी, दोस्त, प्रियतम, मकान मालिक, किरायदार या संबन्धी के रूप में होता है।
भोली भाली मुरतरूपि सूरत को अपनी बातों में फसा कर उसका शारीरिक और मानसिक शोषण करता है। महज़ 8वीं और 9वीं कक्षा में पढ़नें वालो या इस उम्र के बच्चों से अगर नाम पूछा जाए तो वह बतानें के क्रम में दस बार सोचता है फिर भी हकलानें लगता है......उस पर यह हरामख़ोर अपनी नामर्दगी साबित करता है।
एक मिनट के लिए जरा सोचें यह शोषित व्यक्ति अगर हमारे घर का निकला तब क्या होगा...उसपर कितनें और किस प्रकार के प्रहार हुआ होगा.....सोच कर दिमाग़ में कंपन होनें लगता है।
इस लिए जहाँ भी यह हरामख़ोर मिले हमारा कर्तव्य और दायित्व बनता है की इस मानसिकता वालों का पुरे जोर से कठोर विरोध करें, अपनें परिवार और समाज की मासूम जिंदगी की रक्षा करें...
और अंत में...
गोरा-चिट्टा, भोली सूरत, शांत स्वभाव पर न जाए। यह कितनों-कितनों को चुपचाप का दिखावा कर अपनें जंजाल में फसाता है।
अभी संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में हूँ । ऊपर वाला सीट है, ठण्ड बहुत लग रही है अपना पृष्ठीय क्षेत्रफल कम कर दिया हूँ..फिर भी कोई असर नही दिख रहा है..ओहो मैं आपको बताना भूल गया की मेरे सीट के ऊपर दो दो पंखा चल रहा है...
सामनें वाले सीट पर एक मोहतरमा हैं जो दोनों पंखे पर मालिकाना हक जमा रखी है....मैं अपना दुखभरी राग में भी दर्द सुनाता हूँ तो वो नही मानती है, बोलती तो ऐसी है जैसे सलमान खान की बहन हो " मैनें एक बार कमिटमेंट कर दी हूँ उसके बाद पंखा बंद नही होगा..."इतनें ठण्ड में आइसक्रीम भी खरीद कर खा रही है...
जो मुझे अच्छी तरह से जनता उसे पता है कि गर्मी के मौसम में भी मेरा और पंखा का कैसा रिश्ता रहता है...
और अंत में ...
हाँथ बर्फ हो गया है लिख नही पा रहा हूँ । पता नही यह क़यामत की रात किस तरह गुजारूं..😥😥😥
इस बरस की पहली बारिश और तुम्हारी यादों की बौछार के साथ मिलकर कपकपी ठंड में भी खुद को भींग जानें से नही रोक पाया ।