गिरता झड़ना झर झर करता
बहती नदियां कल कल करती
पानी का क्या है..वो सब में ढलता
पानी निश्छल है ,पानी बेरंग है
पानी इज्ज़त है, पानी रंगत हैं
पानी मंजिल है, पानी कहानी है
रुकिए
ठहरा हुआ पानी का आपबीती सुनाता हूँ.
पानी का भूत, वर्तमान, भविष्य सुनाता हूँ
अगले विश्व युद्ध की निशानी है
Pop ग्राउंड की सबकी जुबानी है
सीढ़ी पर पसरा आज की कहानी है
उसके बगल में बैठने में आनाकानी है
यह किसी को नही दिखता
यह उसकी परेशानी है
एक तरफ गिरा पानी,
दूसरे तरफ़ खुद को गिराना था
गिरते गिरते उस पर बैठना था
फिर गिरती निगाहों से पानी पानी होना था
गिरते निगाहों/आँखों से पानी भी दिखाना था..
फिर पानी पानी हो उसे दिखाना था..
...
....
और अंत में
धीरे धीरे दिन चढ़ता है
धीरे धीरे पानी सूखता है
धीरे धीरे घुन लगता है
धीरे धीरे बात अनसुना होता है
धीरे धीरे व्यवस्था बिखरता है
धीरे धीरे अविश्वास बढ़ता है
धीरे धीरे आदमी खुद को खोता है
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जाते जाते..
मन मे एक बार ख्याल आया...
एक बार उस पर बैठ कर दिखाते
क्यों नही हम उस पर बैठ पाते
आज इतनी ही उसकी ख्वाहिश थी