ना नींद बाँटती है
ना बातें बाँटती है
ना ख्वाब बाँटती है
सब कुछ अपनें हिस्से रखती है
ना दर्द बाँटती है
ना कहानी बाँटती है
ना फटे हुए एड़ी की छाप बाँटती है
सब कुछ अपनें हिस्से रखती है
ना दिन बाँटती है
ना रात बाँटती है
ना मेहनत का थका हुआ हिस्सा बाँटती है
सब कुछ अपनें हिस्से रखती है
ना सुखी हुई रोटी बाँटती है
ना घटा हुआ सामान बाँटती है
ना फटे हुए कपड़े की हिस्से बाँटती है
सब कुछ अपनें हिस्से रखती है
मैं देखता हूँ
मैं तड़पता हूँ
मैं रोता हूँ
मैं इंतज़ार करता हूँ
फिर भी
सब कुछ अपनें हिस्से रखती है
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