Wednesday, 30 November 2016

शादी कर नायिका जब सुसराल जाती है, वह अपने हर श्रृंगार के माध्यम से नायक से कुछ कहती है__________

सौतन् हो गई नथुनी हमारी, समझा लेवे सुबह-शाम
पिया कुछ बोल न पावे, धततेरी हो गई परेशान

टूट गई सब चूड़ी हमारी, हो गई मैं बदनाम
पिया को कुछ समझ न आवे, धततेरी हो गई परेशान

लाली हमार बिंदिया, झख मारे भोर और साँझ
पिया के मन को ज़रा न भावे, धततेरी हो गई परेशान

उलझन हो गई पायल हमारी, चल न सकूँ मनयार
पिया को कुछ दिख न पावे, धततेरी हो गई परेशान

पड़ोसन हो गई गजरा हमरी, चुग़ली करे चारो ओर
पिया का मन ज़रा न बहले, धततेरी हो गई परेशान

नो-लखा हो गई झुमका हमरी, ताना मारे दिन-रात
पिया का मन ज़रा न डोले, धततेरी हो गई परेशान

हरजाई हो गई कंगन हमरी, करे लाखो सवाल
पिया का मन ज़रा न घबरावे, धततेरी हो गई परेशान

उलझन हो गई लँहगा हमरी, करे हर वक़्त परेशान
पिया का मन सोच न पावे, धततेरी हो गई परेशान

चोरनी हो गई चुनड़ी हमरी, देखे चारो ओर
पिया का मन देख न पावे, धततेरी हो गई परेशान

बासी हो गई माँगटिका हमरी, सवतीया मारे डाह
पिया का मन अब भी है परदेशिया, धततेरी हो गई परेशान

#और_अंत_में
नायक कहता है......
मुझे मनाना नही आता है !
पर वादा करते हैं कभी रूठनें नही देगें !!

Tuesday, 29 November 2016

एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स का आखरी खत ...!



Sunday, 27 November 2016

सच्चाई तेरी गलियों की ......

ग़ालिब तेरे शहर में सब सच्चे हैं..
बस तेरे अपनों को छोड़ कर...

अस्मत लूट कर अपनें कहनें वाले,अस्पताल पहुँचा दिये..
नायिका तब कहती है :-----
सजन तू कितना मेरा स्वास्थ्य का ख़्याल करते हो..

अनुभव का बाज़ार में माँग बहुत है ग़ालिब..
बेईमानी की तराजू से ईमानदारी बिकता है बाबू 

10 रुपये के दाम पर एक लड़की बेवफ़ा हो गई,
लाख-लिख लेकर एक लड़का पति से देवतुल्य हो गए।

भारतीय नारी

[[★भारतीय नारी★]]
मेरी देहयष्टि या मुख के आकर्षण पर ना जाओ ,
यह कुछ दिन रहेगा फिर शायद ना रहे।
आकर्षित होना है तो मेरे गुणों और आदर्शों से आकर्षित रहो जो दिन प्रतिदिन निखरेंगें।
[[☆भारतीय बहन और बेटी☆]]
मुझे सभी पुरुषों में सामान्यतः भाई या पितृवत स्नेह देखने के संस्कार हैं।
आप कृपया इन संस्कारों के अनुरूप चलने के लिए , बाजार और कार्यस्थल का वातावरण निर्मित करें। और यदि मुझ से स्नेह उमड़ता भी है तो भाई सी रक्षा का दायित्व निभाएँ।
[[☆भारतीय बहु☆]]
मुझे बताया गया है मुझ पर दो परिवारों (कुल) के मान -सम्मान व रक्षा का कर्तव्य होता है।
मुझे बहकाने का प्रयास ना करें।
मुझे इनकी प्रतिष्ठा बढ़ानी है , मुझे अपने कर्तव्यों से विमुख करने के प्रयास में आपको विफलता ही मिलेगी।
[[☆भारतीय नारी दायित्व☆]]
चाहे हम माँ, बहन, बहु, बेटी या पत्नी ,जो भी हों ,
दुनिया की अन्य नारियों को
"भारतीय गरिमामय नारी " चरित्र की प्रेरणा देना अपना कर्तव्य मानतीं हैं।
इस देश की नारी जो किन्हीं प्रलोभनों या भ्रमित कर दिए जाने के कारण यह गरिमा खो रही हैं ,
उन्हें सही दिशा और गरिमा वापिस दिलाना चाहती हैं।
भारतीय पुरुष को भी नारी को आदर से रखने और उसके रक्षक होने के संस्कार होते हैं।
आप कृपया इसका पालन कर वह वातावरण हमें उपलब्ध करायें ताकि हम अपने कर्तव्यपरायणता में सफल हो समाज और भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को सुखी बना सकें ||
,,,,,, मोनिका सूद ,,,,,,

Saturday, 3 September 2016

राजनीति का पर्यायवाची शब्द है थूक कर चाटना..बहुतों को राजनीति में महारथ हासिल हो गया है।

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा !
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा !!

मैं जी गलत काम करनें वालों को पार्टी में नही रखता हूँ जी....सिर्फ़ अच्छे व्यक्ति को ही पार्टी का टिकट देता हूँ जी। अब आप लोग को पता चल गया कि मैं ईमानदार हूँ जी।:--- #केजरीवाल (मुख्यमंत्री)

सच्चा प्यार तो सात फ़ेरे लेनें के बाद भी नही होता है जी, वो अलग बात है कि घर से निकलनें के पहले पति जब पत्नि का पैर छुता है तो प्यार का आभास होता है परन्तु शुरुआत कहीं और होता है:---#संदीप_कुमार(महिला और बाल विकास मंत्री )

अब ग़ालिब तुम ही बता दो, कोई अच्छा है तो,कैसे अच्छा है और क्यों अच्छा है?
प्रश्न का उत्तर खोजते खोजते थक गया हूँ क्योंकि
ग़ालिब तेरे शहर में,मैं भी अच्छा कहलवाना चाहता हूँ।

Thursday, 18 August 2016

रियो ओलंपिक और रक्षाबन्धन !

प्रिय मित्रों

हरिस्मरण !

आज सुबह सुबह उठते ही जब जुकरबर्ग भाई के fb को हाथ लगाया उधर से ‪#‎साक्षी_मलिक‬ बहिन सभी भारतीय निठल्ले गबरू भाई को अपने कांस्य पदक से ही राखी बाँध रही थी उसमें भी पहलवानी वाला।हम भी गर्व से अपना छाती फुला कर हाथ आगे कर दिये की आज से मेरी रक्षा की जिम्मेदारी बहन तुम्हारी हुई।

मन ही मन याद कर रहा था की एक जमाना था जब घर में लुड्डो भी खेलनें देना दूर के बात छूनें भी नही देते थे। बहुत मुस्किल से जब खिलाड़ी घट जाता तब एक, दो चान्स मिलता था... छु-ती-ती-ती, चोर-सिपाही, क्रोस- ज़ीरो, कैरम बोर्ड... यदि सब वाला खेल में मौका मिलता था उसमें भी घर के अंदर ही।

गलती से भी किसी कुत्ते पर भी पत्थर उठा कर नही फेकी होगी।कभी भी गुस्से से गिलास भी उठा कर नही पटकी होगी। हाँ अगर गुस्सा ज्यादा आने पर देर तक खाना बनाने के साथ एक दो रोटी जरूर ज्यादा बना देती थी।

अपने परवरिस के विपरीत आज तूनें पुरे दुनियाँ के सामने जो पहलवानी की है, जिस तरह से उठक-पटक कर चीत कर सारे देशवासियों को ‪#‎रियो‬ ओलंपिक में पहला पदक के साथ हमारी चहरे पर जो मुस्कान दी है, उसमें भी ‪#‎रक्षाबन्धन‬ के दिन अपने आप पर गर्व कर रहा हूँ। साथ ही अपने किये पर पश्चयताप भी हो रहा है और लज्जा भी आ रही है।

आज हम सब संकल्प लेता हूँ की तुम्हारी स्वतंत्रता, आज़ादी, पसंद, नापसंद, तुम्हारी हर इच्छा को सर्वोपरि स्थान दूँगा। तुम्हारी विकसपथ पर कभी भी धर्म, समाज का रीति रिवाज, प्रथा का आँच नही आनें दूँगा।

जो गलतियाँ हो गई तो हो गई अब अपने बराबर तुझको भी अधिकार दूँगा ही नही बल्कि किसी तरह का अंतर या भेदभाव नही करूँगा।

और अंत 

हम सभी देशवासी ‪#‎दीपा_कर्मकार‬, ‪#‎सानिया‬, ‪#‎साइना‬, ‪#‎सिंधु‬, ....सभी पर हमेशा ही गर्व करता हूँ और करता ही रहूँगा। हार जीत खेल और जीवन का क्षणिक हिस्सा होता है। आप सभी पहले से ही इस देश की डायमंड, प्लेटिनीयम हैं...... स्वर्ण, रजत, कांस्य का पदक लेनें की हम सब की भी कोई तमन्ना नही है, बस हम सब के लिए आप देश का नेतृत्व करतें रहें यही हमारे लिए सोभाग्य की बात है।

..

आप सभी को साथ ही मित्रों को

‪#‎__रक्षाबन्धन_की_बधाई_और_शुभकामनाएं‬!



Thursday, 11 August 2016

सच्चे प्यार को तरसती और भटकती मीना को शायद यह भी नही पता था कि उनके प्यार की मंजिल कौन है :- ट्रेजडी क्वीन

अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंजिलें है कौन सी, ना  वो समझ सके न हम
फिल्म थी - #दिल_अपना_और_प्रीत_पराई। अगर आपको प्रेम कहानियों में दिलचस्पी है और आपने यह फिल्म नहीं देखी तो समझिए आप एक खास चीज देखने से महरूम रह गए हैं । वासना रहित प्रेम कितना सघन और प्रबल हो सकता है आपको इस फिल्म से पता चलता है।
कुछ दिन पहले देखी यह फिल्म का असर आज भी है। लगता है कि यह रूह में गहरे पैबस्त हो चुकी है । एक डॉक्टर से अटूट प्रेम करती नर्स की अनूठी कहानी पर फिल्म आधारित है। संयोग कह लें कि इसकी नायिका मीना कुमारी ही थीं । आप कल्पना नहीं कर सकते मीना की जगह कोई और इस गुम्फित चरित्र को निभा सकता था ।
अभिनय इतना जबरदस्त कि लगता था कि यह मीना कुमारी की ही अपनी जिंदगी हो। यही उनके अभिनय की खासियत थी। ऐसा लगता मानो फिल्मी किरदारों की रूह उनमें समा गई हो। यही क्यों, #साहब_बीवी_और_गुलाम में छोटी बहू के किरदार में मीना कुमारी अद्भुत लगी हैं।
कहते थे यह किरदार उनकी जिंदगी के बेहद करीब था । दूसरों पर प्यार का समंदर लुटाने के बाद भी सच्चे प्यार की एक बूंद के लिए तरसती मीना का दिल गमों, कराह और दर्द का ऐसा जखीरा बन चुका था जो कभी खाली न हो सका ।
यहूदी में एक विजातीय रराजकुमार को दिल दे बैठने वाली लड़की के किरदार में मीना का रोल भुलाए नहीं भूलता । मोहब्बत और फर्ज की जंग में अपनी आखें फोड़ लेने वाले ट्रेजडी किन्ग दिलीप साहब के मुकाबिल ट्रेजडी क्वीन ही टिक सकती थी।
#दिल_एक_मंदिर में उनके हीरो एक बार फिर जानी यानी राजकुमार थे। मीना कुमारी के साथ काम करते हुए उन्होंने भी अपने अभिनय का रेज गजब उठाया था । अस्पताल में कैसर से जूझ रहे पति की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए ब्याहता का सातों ‌सिंगार में सजकर आने का दृश्य अरसे तक कचोटता रहता है ।
ऐसी कितनी फिल्मों के नाम गिनाए शायद कई किताबें अधूरी पड़ जाएगी। कमाल अमरोही से बेपनाह मुहब्बत उन्हें मंजिल- ऐ- मकसूद तक नहीं पहुंचा पाई। प्यार की मृगतृष्णा उन्हें उम्र भर भटकाती रही। कभी किसी के दामन से लिपट कर रो लेना, कभी मयकशी के जरिए गम को भुलाने की नाकाम कोशिश ने निजी जिंदगी में भी उन्हें ट्रेजडी क्वीन बना दिया ।
मीना प्यार की चाहत में भटकती मीरा की तरह ही थीं । फर्क सिर्फ इतना है कि मीरा जानती थी कि उनका प्यार तो गिरधर गोपाल है जो आत्मिक तौर पर हर वक्त उनके साथ ही कहता है । सच्चे प्यार को तरसती और भटकती मीना को शायद यह भी नही पता था कि उनके प्यार की मंजिल कौन है । यही इस ट्रेजडी क्वीन की सबसे बड़ी ट्रेजडी थी।
तनहाई का इनफिनिटी तक के विस्तार का दूसरा नाम था मीना कुमारी। आप इससे इत्तेफाक रखें या न रखें । मीना कुमारी के साथ ही इश्क की मंजिल के लिए भटकती हर शख्सियत को खिराजे अकीदत पेश करते हुए।

Tuesday, 9 August 2016

धर्मप्रेमिका !

मोहब्बत रोग होती है ,कहा भी था,,
रुला कर खुद भी रोती है,कहा भी था,,
किनारे के करीब ले जा कर,,
ये कश्ती को डूबोती है,कहा भी था,
तुम इसको दिल की धरती का पता मत दो,,
ये इसमें दर्द बोती है,कहा भी था,,
मोहब्बत में ख़ुशी के बाद गम की घडी,,
बहुत नजदीक होती है,कहा भी था,,
लुटा कर दिल को रोने से, भी क्या हासिल,,
बहुत नायाब मोती है,कहा भी था,,
शुरू से इसकी आदत है ज़माने में,,
जगा कर खुद ये सोती है,कहा भी था,,
ये सर से पाँव तक राख़ कर देगी,,
बहुत बेदर्द होती है,कहा भी था।।।


Thursday, 28 July 2016

पटना से भागलपुर की यात्रा...!

अभी दानापुर भागलपुर इंटरसिटी से भागलपुर जाने वाला हूँ..मेरे साथ नाम तो सुना ही होगा #राज ! राज है, पूरी तरह सज धज के...सुगंधित इत्र के साथ तैयार होकर... मुझे बोला है चलनें के लिये। मैं भी #मैगी की तरह 2 मिनट में तैयार हो गया हूँ....लग रहा ट्रेन छूट जायेगा,
हनुमान मन्दिर पहुँच गया हूँ, पूरी तरह सावन के सोमवारी में भक्त डूबा हुआ है और मैं डाक बम की तरह दौर रहा हूँ, राज पीछे हफ्ते हफ्ते आ रहा है, ट्रेन को धर के पकर लियें हैं..ई का महाराज सिलिपर डिब्बा इंटरसिटी में ...राज भी क्या कम लगता है खिड़की से हाथ घुसिया के रुमाल फ़ेक कर दो सिट का रिजर्ववेसन करा लिया है।छाती चौड़ा कर के बैठते ही एक महिला आ गई है। राजबा को बोलें महिला है अपना सीट देदो.. ई हँसते हुए मुझे देखा, और अपना दाँत दिखाते हुए बोला तुम अपना सीट देदो, और कान में तेल डाल कर सो गया है...अपना सीट महिला को देते हुए पूछा आगे कहाँ तक जाना है? वो बोली बिहार सरीफ, हरनौत जा रहें हैं पिताजी का तबीयत ख़राब है अंतिम समय है मिलनें जा रहें हैं !
एक व्यक्ति मेरे बगल में खड़ा है और अपना हाथ झोला पर से नही हटा रहा है दूसरा व्यक्ति बोला ई झलबा का जान छोड़ दो या मथबा पर् ले लो...उधर से तीव्र गति से रिस्पॉन्स मिला चोरी हो जायेगा तो क्या तू अपना घरबा से लाकर देबेे की..फिर क्या होना है दोनों के बीच संस्कृत का पाठ शुरू हो गया है....
मुझे तो यही लग रहा है इस ट्रेन मे चोरी होना आमबात है क्योंकि राज भी अपना झोला को लात में फसा कर सीट के नीचे रख लिया है।
झालमुड़ही वाला भी आ गया है उसकी आवाज़ सुनते ही एक सज्जन बोलें..कितनों भीड़ रहेगा ई चढ़ जेयवे करेगा और लगता है दूसरे के मथबे पर रख कर बेचेगा...
ट्रेन रुकते ही बोल बम! बोल बम सुनाई देनें लगा है शायद सुल्तानगंज जाने वालें बम हैं.... "बोल बम बोल कर !ट्रेन के भीड़ को चीर कर!!" बोलते अन्दर आ रहा है, एक बम बोला ...पूरा ट्रेन ख़ालिये है,आबेने रे तोरा जगह दिलबो हिये$$.....इसे ही कहते हैं भोले भंडारी की शक्ति, सब मुस्किल को चुटकी में हल कर देतें हैं।
अब भागलपुर पहुँच कर बातचीत होगी...
और फ़िलहाल राज बाबू गर्दन को खिड़की के रड पर रख कर सो रहा है और बीच-बीच में आधा आँख खोल कर बोलता है...नींद आ रहा है!

Monday, 4 July 2016

दिल्ली से पटना " मगध एक्सप्रेस"

अभी मगध एक्सप्रेस में हूँ , टिकट आधा ही कन्फ़र्म हुआ है और उस पर तीन गोटा कोच काच के बैठ गयें हैं।सामने वाले सीट पर दो बच्चे अपनी माँ के कभी गोद में कभी कंधे पर चढ़ के चौंउ चौंउ कर अपने निश्छल प्रेम से लोट पोट हो रहा है, बच्चों की भाषा को सिर्फ़ माँ ही समझ रही हो, और माँ की भावनाओं को सिर्फ़ वो, बीच में और किसी को कोई जगह न हो।
सामने एक महान आत्मा है जो बिना मुँछ के बार बार ताऊ देते जा रहा है, लगता है जवान का नया नया शादी हुआ है, अभी पानी वाला आया है आते ही जवान ने उसको रगड़ दिया है, पानी के एक बोतल लेकर बोला यह बोतल क्यों बेच रहा है जब तक रेल नीर का बोतल लाकर नही देगा ई बोतल न देगें, जाओ सिर्फ रेल नीर का बोतल लाओ, हॉकर बोला मालिक हमको यही मिलबे करता है हमार बोतल दे दीजिय, जायदा करियेगा तो ए गो ला कर दे देगें, इ बतबा सुनते ही जवान को ताऊ आ गया बोला तुम लोग भारत के रेल बेच कर खा गए हो जल्दी रेल नीर लाओ नही तो नौकरी से हटवा देगें... और फिर क्या था जवान पुरे कंपाट में रेलवे के माई बहिन पर् भाषण देना शुरू कर दिया है पाँच आदमी हाँ में हाँ मिला रहा है..
इ जवान को पता नही है कि जो रेल में पानी बेचता है वह गरीब घर से होता है इस लिए वो ट्रेन में पानी बेच रहा है, ट्रेन से हटेगा तो दूसरे जगह पानी बेचेगा,... तुम्हारे ऐसे हरामी लोग जो पेंट्रीकार के ठीकेदार को कुछ नही बोलेगा लेकिन गरीब गुरवन को गर्दन ज़रूर तोड़ेगा.. गलती से कहीं वो अपने बाल बचबन को पढ़ा रहा होगा न तो... तुमको जरूर पानी पिला देगा..
मेरे सीट के कोणा कोणी में एक युवक अपने मोबाईल पर लगातार अँगुली फेर रहा है और बीच-बीच में अपना मुँह बिचका रहा है.. जब हम भी गर्दन टेड़ा कर के देखें तो एक लड़की का फ़ोटो को ज़ूम कर कर के देखे जा रहा है ...
Pslv से तेज रफ़्तार से खाना देने वाला आ रहा है रुकते ही सनी देवल के स्टाइल में बोला डवल अंडा बिरयानी, रायता, आचार,पानी ,प्लेट और चम्मच खाना में है...जो पूछ रहा था वह अभी तक कन्फ्यूजयाल है क्या बोला गया है...
ट्रैन का ख़टर ख़टर जब धीरे होता है तब खिड़की के बाहर से बेंगवा का टर् टर् तेज हो जाता है...देखिये अब कौन तेज बोल कर जीतता है... पूरी रात बाँकी है...
पैर में दर्द अब होने लगा है थोड़ा झार झुर के सीधा कर लेतें हैं ।
और अंत में..
भूख भी लग गया है कुछ इंतज़ाम करता हूँ इस पेट महाराज का।

Monday, 30 May 2016

धर्मप्रेमिका ! Unspoken Love

तेरी माथे पर यह लाल चुनरी क्या ख़ूब दिखता है....!
अगर तू इसे परचम बना लो फिर तब कोई बात हो....!!

Sunday, 22 May 2016

इस तरह मुहब्बत की शुरुआत कीजिए!

इस तरह मुहब्बत की शुरुआत कीजिये
एक बार अकेले में मुलाकात कीजिये।
सुखी पड़ी है दिल की जमीं मुद्दतो से यार
बनके घटायें प्यार की बरसात कीजिये।
हिलने न पाये होंठ और कह जाए बहुत कुछ
आंखों में आँखे डाल कर हर बात कीजिये।
दिन में ही मिले रोज हम देखे न कोई और
सूरज पे जुल्फे डाल कर फ़िर रात कीजिये।
:::::::::::::::अलका संग विशेष :::::::::::::::::
धागा है ये प्रेम का जीवन का विश्वास,
एक दूसरे में घुलें प्राण बसे ज्यों साँस !
सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए ....
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...!!
_____________________________________
अपना जन्म किसी को याद नही रहता है, पर इतना तो सच है दोस्त,तुमनें जो नये जीवन की शुरुआत की है वह पुनर्जन्म हुआ है तुम्हारा और मैं स्वागत् करता हूँ इस नए जीवन पथ पर, तुम्हारे साथ हाथ पकड़ के चलने वाली हर सुख दुःख की जो संगनी है,उसके साथ सुनसान रास्ते पर अपनापन लगेगा, हर सपना सच लगेगा, हर ख्वाहिश पूरी होगी, दिल और मन की हर मुराद पूरी होगी.... 
बस दोस्त मेरी सीता जैसी भाभी का हाथ पकड़े रहना, तुम्हारी हर इच्छा की पूर्ति होगी...
मैं भगवान से दुआ माँगा हूँ...की मेरे दोस्त को 7 जन्म नही चाहिए जीने के लिए बस इसी जन्म में सातो जन्म के बदले सारा जीवन दे देना और इसी जन्म में सारा प्यार देदे इन दोनों के बीच बना रहे...बाँट बाँट कर न तो जीवन न ही प्यार देना...सब कुछ इसी जन्म में दे देना भगवान! 
एक बार पुनः
सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए .... 
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...!!

Thursday, 12 May 2016

मातृ दिवस पर "मन की बात"

जिस समाज में स्त्री के अस्तित्व और उसके मान सम्मान पर हर रोज प्रश्न चिन्ह लगतें हों वहाँ पर एक दिन का मातृ दिवस का ढ़ोल, मैं नही पिट सकता हूँ।
मातृत्व सुख और उसकी पीड़ा क्या होती है ? यह तो हर माँ ही बता सकती है। क्योंकि इस मामले में मैं अयोग्य हूँ, इस लिए लिख नही पा रहा रहा हूँ।परंतु ऐ तो सच है यह दुनियां की सबसे सुखद अनुभूति होती है।
मातृत्व सुख चाहे मनुष्य, पशु, पक्षी के मादा का हो हमेशा सुखद,पीड़ादायक,उत्साहवर्द्धक,स्नेहपूर्ण, ममता से भरा हुआ होता है।लेकिन मातृ दिवस पर हम सब सिर्फ अपनी माँ को ही याद कर के छोड़ देतें हैं बाँकी सब प्राणी ऐसे हैं जिसनें पीड़ा सहन ही नही की हो....
किसी अभागन की मांग सुनी है फिर भी गोद भर जाए मतलब एक अविवाहिता का मातृत्व सुख बेहद भेद-भाव पूर्ण एवं कष्टपूर्ण होता है हम सब तो मिलकर उसके और बच्चे की साँसे तक छीन लेते हैं क्योंकि माँ बन कर दुनियां का सबसे बड़ा पाप जो उसने कर दिया है...
पतित महिला के बारे में हम सब तो भूल ही जाते हैं की उसका न तो महिला दिवस होता है और न ही मातृ दिवस, आज के दिन भी वे कहीं पर दम तौड़ रही होती है... उसकी तो अलग ही दुनियां है, आज के समय में भला उसे कौन मातृ दिवस का शुभकामनाएं दे रहा होगा...ज्यादा से ज्यादा हमदर्दी दिखानें पर बदन पर से आज कम कपड़े नुचेगें...आत्मा कम कल्पेगा...
तलाक़ और विधवा माँ को हम सब किस नज़र से देखतें है किसी से छुपा नही हुआ है.... आज भी वे अपनी मान समान के लिए हमारे समाज के सामने घुटनें टेके रहती है....उसके बच्चे से हमेशा एक ही प्रश्न पूछते हैं, बाप का नाम बताओ..??
दारूबाज जब अपनी ही पत्नी से कहता है यह किसका बच्चा है? उसके बाद उस महिला से पूछिए मातृत्व सुख और मातृ दिवस क्या होता है ??...
इन सब से थोड़ा संतोषप्रद विवाहिता माँ कि स्थिति होती है। कब गर्भवती होना है कब नही, लड़का को जन्म देना है या लड़की को इस बार मौका देना है या गर्भपात कराना है... सारे फैसले दूसरे के होते हैं। लगता है यह माँ नही कोई मशीन है जो किसी सामान का उत्पाद करेगी दूसरी की माँग, जरूरत, इच्छा के हिसाब से....
बच्चों की परवरिश में भी बच्चे सम्भल जाये तो श्रेय बाप को मिलता है और अगर बिगड़ गये तो कलंक का कालिख़ माँ को लगता है।
हम सब भी बड़े होकर भूल जाते हैं कि माँ ने कितने कष्ट सहकर पाला है और हमारी आनेवाली पीढ़ी को बस यही लगता है की कब बुढ़िया मरे तो इसकी सेवा करनें से जान छूटे...
माँ के लिए हर कोई ज्यादा से ज्यादा घर में AC, चार चक्की गाड़ी, नौकर की व्यवस्था और बीमार होनें पर डॉक्टर एवं हॉस्पिटल की सुविधा, कभी घूमने के लिए बाहर ले जाना... इस से ज्यादा कोई नही करता है।
माँ का ऋण ही इतना ज्यादा है की इसे चुकता या लौटाने के लिए सोचता भी नही हूँ..इस कर्ज़ में डूबे रहनें का अपना अलग ही मज़ा है...
ऊपर तमाम बातों के बावजूद #मातृ_दिवस मनाना बेहद ज़रूरी है..
और अंत में
प्राणी जगत् के समस्त माताओं को #मातृ_दिवस पर चरण स्पर्श..!

Wednesday, 4 May 2016

मन पर "मन की बात"

जिंदगी के रास्तों में लात खाते-खाते ,गालियाँ सुनते-सुनते, दूसरों का ताना-बाना झेलते-झेलते अपने अंदर एक जबरदस्त मानसिक नवविचार का ठहराव पाता हूँ। अब हम खुद से कहते हैं कि अब किसी की इतिचुकी की भी परवाह नही, चाहे कोई कुछ सोचे या कुछ भी बोले जो रास्ता हमनें चुना है सबसे बेहतर है......
"अपनी जिंदगी अगर खुद की मर्जी से न जीयी तो सब बेकार है"

पिंजरे में बंद परिन्दे,आज़ाद पक्षी को घयाल होते देखकर बड़े प्रसन्न होते हैं,
क्योंकि उनकी घुटन से उत्पन्न हीनता की भावना को शान्ति मिलती है!

'P' शब्द बहुत प्रिय है :-

       हम जिंदगी भर P के पीछे भागते रहते है ।
जो मिलता है वह भी P और जो नहीं मिलता वह भी P ।

                 P  👨  पति
                 P  👩  पत्नि
                 P  👦  पुत्र
                 P  👧  पुत्री
                 P  👪  परिवार
                 P   💵  पैसा
                 P  💺  पद
                 P  🏡  प्रतिष्ठा
                 P  😇  प्रशंसा
                 P  ❤  प्रेम
                 P 💑  प्रेमिका
                 P 💃 पगलीश्री
                
       ये सब P के पीछे पड़ते-पड़ते हम पाप करते है यह भी P है ।  फिर हमारा P से पतन होता है और अंत मे बचता है सिर्फ, P से पछतावा ।  पाप के P के पीछे पड़ने से अच्छा है परमात्मा के P के पीछे पड़े।
और P से कुछ पुण्य कमाये.

P से प्रणाम..

Tuesday, 26 April 2016

सभी बहनों को समर्पित

मैंने आख़री बार कब बहन को फ़ोन मिलाया था कुछ धुन्दला सा याद है
मैंने आख़री बार कब उसे खूब हँसाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
सुबह स्कूल जाने से पहले मेरा नाश्ता त्यार रहता था
मैंने आखरी बार कब पहला निवाला उसके मुँह में डाला था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो मेरे स्कूल की छुटियों का काम कर दिया करती थी
मैंने आख़री बार कब शुक्रिया अदा जताया था, कुछ धुन्दला सा याद है
गर्मियों के वो दिन जब मैं खेल के घर लौटता था और वो शरबत बना दिया करती थी
मैंने आखरी बार कब उसकी तारीफ करके सरहाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
मेरी हर ज़िद्द के लिए उसने अपनी गुल्क तोड़ी है
मैं कब बिना किसी वजा के उसके लिए तोहफा लाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो मुझे बाप की गालियों और मार से बचाया करती थी
मैंने कब उसकी ख्वाइशों पे असर आज़माया था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो मेरी बड़ी फ़िक्र किया करती थी नाजाने मैं क्यों ना समझा
मेरे अंदर दबा उसके लिए बेहद प्यार का एहसास कब दिलाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
वो जब भी आती है मैं अब उसे दीदी या बहन कहकर पुकारता हूँ
मैंने आखरी बार कब उसे चुड़ैल या भूतनी कह कर चिढ़ाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
डोली की विदाई वक़्त सारे रो रहे थे इसलिए मैं भी रो पड़ा
मैंने ये झूठ क्यों फ़रमाया था, कुछ धुन्दला सा याद है
अब ये आलम है के मैं उसी घर में रहता हूँ और वो कभी कभी आया करती है
तेरी बहुत याद आती है कहकर कब सीने से लगाया था, कुछ धुन्दला सा याद है ~

Thursday, 7 April 2016

धर्मप्रेमिका की यादों की गलियों से....

तेरी यादों की कोई सरहद होती तो अच्छा था !

खबर तो रहती….सफर तय कितना करना है !!

Friday, 1 April 2016

-:: सीतवा::-

सन् 1998 की बात है.. रखवा बस्ती का शुकर मांझी अपने दो-तीन साथियों के साथ एकदम भोरे-भोरे जब अँधेरा छँटा नहीं था तब बकरी के लिए पाल्हा (चारा) लाने के लिए जंगल की ओर निकला । जंगल के बोरवा गढ़ा के निकट पहुँचे ही थे कि एक नवजात बच्ची की रोने की आवाज़ सुनाई दी… रोने की आवाज़ बहुत जोर-जोर से आ रही थी… इतनी सुबह और यहाँ इस जंगल के बीचों-बीच बोरवा गढ़ा में जहाँ पे भूतों का निवास माना जाता है, वहाँ से बच्चे की रोने की आवाज़ ? शुकर मांझी के साथी सब डर गए… बोले ,” शुकर दा.. कुछ गड़बड़ सड़बड़ लग रहा है यहाँ … चलिए जल्दी से निकलते है इधर से .. अँधेरा छंट जाने के बाद आएंगे “.
“अरे ऐसा कुछ नहीं है.. जब शुकर मांझी साथ में है तो काहे का डरना ? .. चल.. चल के देखते है कि आवाज़ कहाँ से आ रही है.. और वहाँ क्या है ?”
“ ई साला शुकर मांझी पगलाय गेल हो मर्धे… लागो हो सुभे-सुभे चढ़ाय के आइल हो… एकर चक्कर में हमनी मत रोह मर्धे.. चल जल्दी भाग हिया से”.
और फिर सभी शुकर मांझी को अकेला छोड़ के वहाँ से भाग लेते हैं। शुकर मांझी मंतर पढ़ के अपने शरीर को बांधता है और आवाज़ आ रही दिशा की ओर चल पड़ता है। एक बरगद पेड़ के नीचे जहाँ से एक बड़ा सा नाला गुजरा था.. वहाँ सफ़ेद कपड़े में लिपटी एक बच्ची जोर-जोर से रो रही थी। शुकर मांझी डरते-डरते धीरे-धीरे बच्ची के पास पहुँचा और उसे 2-3 मिनट तक निहारता रहा.. फिर उसे झुक के छुआ.. और जब कन्फर्म हो गया कि ये कोई भ्रम नहीं है.. कोई भूत-वूत नहीं है तो उसे गोद में उठा लिए और हिलाते हुए चुप कराने लगे। पता नहीं कौन सी निष्ठुर माँ थी जो इस बच्ची को यहाँ जंगल में और इस नाले में छोड़ के चली गई थी …. और पता नहीं कब छोड़ के गई थी ... सियार-हुंडार, साँप-बिच्छू का यहाँ बसेरा है, लेकिन भगवान ‘मरांग बुरु’ की कृपा थी की बच्ची को खरोच तक नहीं आया था। शायद मरांग बुरु ने ही दारु पीये शुकर मांझी को उस बच्ची के पास भेजा था।… शुकर मांझी उस बच्ची को अपने गमछा में लपेटा और अपने घर ले आया।
1-2 घंटे में ही पुरे रखवा और कोदवाडीह बस्ती में हल्ला हो गया कि शुकर मांझी को जंगल में एक बच्ची मिली है। उसके घर में उस बच्ची को देखने के लिए मज़मा लग गया। बात फैलते-फैलते हमारे गाँव भी आ पहुँची। मेरे गांव में दो जन निःसंतान हैं… एक बंधन महतो और एक लालू तुरी जो नावाडीह थाने में चौकीदार है… लालू तुरी को गांव में चौकीदरवा और उनकी बीवी को चौकीदरनिया कह के बुलाते है. ये दोनों मेरे रिश्ते में दादा-दादी लगते हैं। चौकीदरनिया गांव में कुसराइन(दाई) का काम करती है… लोगों के बच्चों का डिलिवरी करने का काम करती हैं.. लेकिन देखिये भगवान की माया या फिर विडंबना कि जो औरत दूसरों को माँ बनाने में मदद करती है, वो खुद माँ नहीं बन पाई थी। गाँव में अगर ।किसी नवजात बच्चे को हाड़ी लग जाए तो सीधा चौकीदरनिया को आवाज लगाया जाता है और चौकीदरनिया सब काम छोड़ कर दौड़ी चली आती है… जो औरत एक माँ और एक बच्चे का इतना ख्याल रखती थी, उसे भगवान ने माँ के सुख से वंचित कर रखा था।
जैसे ही ये खबर उनके कान में पहुँची दौड़ते हुए सीधा शुकर मांझी के घर पहुँची.. और शुकर मांझी से बच्ची को देने का अनुरोध करने लगी। पीछे-पीछे बंधन महतो की बीवी भी पहुँच गई और उसने भी बच्ची की माँग कर दी। अब बच्ची को गोद लेने के लिए दो-दो दावेदार। लेकिन शुकर मांझी था कि किसी को देने के लिए तैयार ही नहीं। बोल रहा था कि “हम किसी को भी नहीं देंगे…. मरांग बुरु ने ये बच्ची हमको दिया है, तो हम ही इसको रखूँगा।“
शुकर मांझी के दो पुत्र और एक पुत्री थी, लेकिन फिर भी वो इस बच्ची को किसी को देने के लिए राजी नहीं हो रहा था।
समय बीतता गया तो और भी लोग जमा होने लगे… जो उधर के सम्मानित और गणमान्य व्यक्ति थे वो भी शुकर मांझी के घर पहुँच गए.. और मामला देखकर शुकर मांझी को समझाने लगे, “देखो शुकर…. तुम्हारे तो पहले से ही दो बेटे और एक बेटी है… तो तुम अभी संतान सुख का आनंद उठा रहे हो.. भले ही बाबा मरांग बुरु ने इस बच्ची की रक्षा के तुम्हें चुना, लेकिन अगर इस बच्ची के कारण किसी की सुनी गोद भर सकती है.. जो संतान सुख से अब तक वंचित है.. और तुम्हारे चलते उसमें मातृत्व और पितृत्व का भाव जगता है... तो इससे बड़ा और पुण्य का काम भला क्या हो सकता है ?? किसी निःसंतान को संतान सुख देना इस संसार का सबसे बड़ा पूण्य है और इससे बाबा मरांग बुरु भी बहुत खुश होंगे।“

काफी मान मनोवल के बाद शुकर मांझी बच्ची को किसी को देने को राजी हुआ। लेकिन अब वहाँ एक समस्या हो गई.. बच्ची को अपनाने के लिए तीन-तीन दावेदार हो गए। अब इनमें से किसे दिया जाय ??
फिर विचार हुआ और बच्ची चौकीदरनिया को सौंप दिया गया ये जानकर कि ये कुसराइन है, बच्चों के बारे में इन्हें एक-एक चीज पता है… ये बच्ची का सबसे अच्छे तरीके से ख्याल रख सकती है।
चौकीदरनिया ने सबको प्रणाम किया और बच्ची को अपने साथ लाने लगी। जब वो बच्ची को वहाँ से ले के निकली तो, वहीं सभा में मौजूद प्रयाग पाण्डेय साइकिल का पैंडल जोर से मारते हुए गाँव पहुँचे और खबर दिया कि चौकीदरनिया को उस बच्ची को दे दिया गया है और उसे वो पहड़िया वाले रास्ते से ले के आ रही है… हमलोग खबर सुनते ही पहड़िया वाले रास्ते कि ओर दौड़ भागे… सात आठ जन थे अपन… करीब पौन किलोमीटर की दौड़ाई के बाद चौकीदरनिया दिख गई… पास पहुँचते ही जिद्द करने लगे, “ आजी … आजी… नूनी के देखाव न आजी.. !!” तो चौकीदरनिया ने हमलोगों को बच्ची को दिखाया फिर हमलोग बच्ची के गाल को छू-छू कर पुचकारने लगे। फिर हमलोग साथ-साथ ही चौकीदरनिया के घर तक आये… अब तो ये खबर दावानल की भाँति फ़ैल चुकी थी… चौकीदरनिया के घर में मेला लग सा गया बच्ची को देखने के लिए… हर कोई बच्ची का मुँह देख के पैसे से नज़र उतार रहे थे।हमारी मैया ने नज़र उतारने के बाद जब बोली कि, “ चौकीदरनिया… भगवान के घरे देर है अंधेर नाय… एतना सुन्दर बेटी छौवा.. गांवा में केकरो ऐसन बेटी नाय है चौकीदरनिया जेतना सुन्दर भगवान तोरा देल हो !!!”…. इतना सुनते ही चौकीदरनिया अपने आप को रोक नहीं पायी और बच्ची को सीने से लगा कर रोने लगी… माँ फिर बोली.. “ चौकीदरनिया आईझ तोय जी भर के काइंद ले.. काहे कि तोर इ लोर ख़ुशी के हो… आर तोर हरेक लोर काली मईया के प्रसाद जइसन हो आर ओकर आभार प्रकट के माध्यम।“
और जब पुरे गाँव का देखना हो गया तो… किसी ने नामकरण की बात छेड़ दी। फिर पुरे गाँव ने एक साथ उस बच्ची का नाम “सीता कुमारी” रख दिया… और प्यार से सब उन्हें “सीतवा” बुलाने लगे।
जहाँ पूरा गाँव इस बात से खुश था, वहीं एक परिवार इससे नाख़ुश था और वो चौकीदरवा का छोटा भाई सहदेव तुरी का परिवार… क्योंकि चौकीदरवा के रिटायर के पैसा और जमीन जायदाद उनके कोई वारिस न होने के चलते उनके बेटों को ही होना था. सो उनके परिवार ने मोर्चा खोल दिया, “ ई चौकीदरनिया पता नाय केकर जन्मल गीदर उठाय के लेले अइली ही.. केकर खून के पैदाइश आर केकर वंश के.. तोरे वंश के हमर गीदर-बुतरू मइर गेल हलथिन कि एक फैंकाइल गीदर उठाय के लेले अइले ही।“
और इसी तरह से जब बात बढ़ती तो.. उन दोनों परिवारों में भयंकर झगड़ा होने लगता… पहले तो एक दो दिन गाँव वालों ने बर्दाश्त किया लेकिन तीसरे दिन की लड़ाई में मुखिया जी और अन्य लोगों ने हस्तक्षेप कर दिया और सहदेव तुरी और उसके परिवार को जम के लताड़ा और धमकी दिया गया कि “ अगर अगली बार से सीतवा को लेकर किसी भी तरह का झगड़ा हुआ तो सीधा हमलोग पुलिस केस करेंगे तुमलोगों के ऊपर.. तो आज के बाद ये ध्यान रखना”….. और तब जा के उसका परिवार शांत मारा। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ-साथ मन-मुटाव कम होते गया। और जब सीतवा चलने-भूलने लगी तो सहदेव तुरी का बड़ा लड़का बालेश्वर तुरी अपने दुचकिया में बैठा के घुमाने भी लगा.. अपने दुचकिया के नम्बर प्लेट और आगे में “सीता” भी लिखवा लिया। पूरा गाँव सीतवा का ध्यान रखता था.. कभी मेरे घर से तो कभी चाचा के घर से और इसी तरह लगभग सभी के घर से सीतवा के दूध खीर जाता था। सीतवा चौकीदरनिया की बेटी न हो के पुरे गांव की बेटी थी और अब भी है। एक बार सीतवा बीमार पड़ थी.. पूरा सुईया-दवा के बाद भी ठीक नहीं हो रही थी तो, चौकीदरनिया ने काली मईया से मन्नत मांगी कि यदि मेरी सीतवा ठीक हो गई तो मैं सात गांव के मांगल धान के पूवा-रोटी चढ़ाऊँगी और अपने घर से ‘दड़’ देती हुई काली मड़ा तक जाऊंगी।.. और काली मईया ने चौकीदरनिया की बात सुन ली और कुछ ही दिनों में सीतवा पूरी तरह ठीक हो गई। तो चौकीदरनिया ने अपने कहे अनुसार सात गाँव में पुरे ढाक-ढोल के साथ धान माँगकर और उसका पूवा पका कर अपने घर से ‘दड़’ देते हुए काली मड़ा तक गई और काली मईया को पूवा-पकवान चढ़ाई थी।
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समय बीतता गया.. और आज सीतवा 18 साल की हो चुकी है… उसकी शादी किमोजोरिया गाँव में सेट हो गया है.. 16 तारीख को लड़के का तिलक कर के आये है… 14 अप्रैल को सीतवा का लगन बंधना है और 18 अप्रैल को शादी। चौकीदरवा चौकीदरनिया समेत पूरा गाँव खुश है और हो भी क्यों न.. क्योंकि पुरे गाँव के बेटी की जो शादी हो रही है।…
मैं जब भी गाँव जाता हूँ तो चौकीदरनिया के घर जाकर चाय ज़रूर पीता हूँ। आज फिर  चौकीदरनिया के घर बैठा हूँ और चाय पी रहा हूँ… चौकीदरनिया सामने बैठी है, उनके आँखों में आँसू भरे हुए हैं फिर भी मुझसे बोल रही हैं कि, “ इंजीनियर बाबू… देख आईझ हम आपन सीतवा के बिहा कर रहल हिये, वहे सीतवा जेकर के तोय दौड़ के आइल हली पहरिया जगह देखे ले.. ओकरे बिहा कर रहल हिये… आर तोय कहिया करभी ?? जखन सीतवा के बाल-बुतरू भे जिबथिन तखन ? तोर बिहा में नाचे खातिर तो हम तरस रहल हिये इंजीनियर बाबू… कसम से तोर अंगनवा के हम धुर्रा उड़ाय देबे नाइच-नाइच के। आर तोर से बिना सीसी लियल हम मानबो नाय “.
उनका आँख से निकलते आँसू और उसका मज़ाक करना हमारी भी आँख को नम कर गया.. मैं सोच ही नहीँ पा रहा था कि प्रतिक्रिया कैसे दूँ ?
फिर जब थोड़ा शांत हुए तो बोला , “ आजी एक बात बोलियो “.
“हाँ बोल …. “
“ हम न लड़की पसंद कर लिए है !”
“के है… तनिक बताओ .. बताओ “
“ उ न…. तोर समधनिया हो !”
“ई इंजिनीयरवा कहियो न सुधरते”. …
और फिर हम सब वहाँ से निकल भागते है।.
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आज हमें यह सोचने को विवश कर रही है… मैंने दो माओं को देखा .. एक जिसने जन्म लेते ही उसे मरने के लिए उसे जंगल में छोड़ दिया… और एक माँ जिसने उसे गोद लिया और दुनिया से लड़ी। बेटी को जंगल में फेंकने का दो ही कारण हो सकता है.. एक शादी पुर्व संतान हो या दूसरा बेटे की चाह में बेटी का होना ! और मुझे यहाँ दूसरा केस ज्यादा लग रहा है। क्योंकि बच्ची रंग-रूप से किसी बड़े घर की लग रही थी… और बड़े घरों में ही ज्यादातर बेटा-बेटी का लफड़ा चलता है। आज बेटियां कहीं से भी सुरक्षित नज़र नहीं आ रही हैं। न गर्भ में और न गर्भ के बाहर। गर्भ में रही तो एबॉर्शन और गर्भ के बाहर आई तो जंगल या फिर कोई कूड़ादान … और ये कुसंस्कृति हमारे तथाकथित पढ़े-लिखे समाज में ज्यादा ही प्रचलित हो रहा है। बेटा… बेटा… बेटा… और बेटा… लेकिन बेटे को जन्म देने वाली को ही नष्ट करने पे तुले हुए हैं।… अरे तुम्हारे से तो बहुत अच्छे हमारे गाँव के अनपढ़ चौकीदरनिया जैसे लोग हैं जो दूसरे की बेटी को बेटा सिर्फ और सिर्फ संतान समझ के पालती-पोषती हैं। आज तक मैंने किसी ठेठ गाँव वालों को एबॉर्शन करते नहीं सुना है। पांच-छे बेटियों के साथ भी बड़े खुश हैं।
क्या अन्य लोग हमारी चौकीदरनिया आजी से सीख नहीं ले सकते ?
चौकीदरनिया और ऐसे ही तमाम चौकीदरनिया मेरी रोल मॉडल है वो नहीं जो बस बेटी बचाओ आंदोलन का झंडा थामे रहती हैं।
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लव यू चौकीदरनिया।।
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गंगा महतो
खोपोली।